(बहर - 2122,2122,212)
पैर में क्यो गुदगुदी होने लगी
याद तेरी बेबसी होने लगी
वक्त काफी हो गया तुम से मिले
तेरी सूरत अजनबी होने लगी
अपने हाथो घाव ताजा कर रहा
जख्म स्याही लेखनी होने लगी
ये इबारत प्यार का है चेहरा
हर नए गम से खुशी होने लगी
तू नही तेरी निशानी ही सही
देख लो संजीवनी होने लगी
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वक्त काफी हो गया तुम से मिले
तेरी सूरत अजनबी होने लगी
kya baat hai bahut badhiya khyalat
sunder kha hai..
वक्त काफी हो गया तुम से मिले
तेरी सूरत अजनबी होने लगी...wah
आदरणीय रमेश जी सुन्दर ग़ज़ल है! आपको हार्दिक बधाई!
//जख्म स्याही लेखनी होने लगी// इस मिसरे को नहीं समझ सका! आपसे मार्गदर्शन की अपेक्षा है!
आदरणीया मीनाजी, सरिताजी एवं कुतीजी इस विधा में मै अभी संघर्षरत हू इस प्रयास को सराहने के लिये सादर साधुवाद
वक्त काफी हो गया तुम से मिले
तेरी सूरत अजनबी होने लगी.......कहते हैं आँखों से दूर तो दिल से भी दूर......बहुत सटीक है.सादर
सुन्दर
बहुत सुन्दर आ० रमेश जी .. बधाई
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