मेरी आँखों में नज़र ये ढूँढती क्या चीज़ है
कुछ तो बतला दे कि तेरी खो गई क्या चीज़ है ॥
रात दिन सीने की दीवारों पे ये पटके है सर
ऐ खुदा इस बुत में तूने डाल दी क्या चीज़ है ॥
हिज्र में जिस ने सुनी हों ग़ज़लें तन्हा बैठ कर
उससे जाकर पूछिए ये शायरी क्या चीज़ है ॥
तेरे ख्वाबों से उठा तुझ को न पाया सामने
अब समझ में आ रहा है तिश्नगी क्या चीज़ है ॥
यूँ तो जीने का तजुर्बाहै बहुत हम को मगर
अब तलक समझे नहीं हैं ज़िंदगी क्या चीज़ है ॥
नाम है गुरप्रीत सिंह है शौक लिखने का मुझे
ओ बी ओ पर सीखता हूँ शायरी क्या चीज़ है ॥
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अच्छी कोशिश है आ. गुरप्रीत जी, आ. निलेश जी की सलाह स्वागत योग्य है।
वाह वाह भाई गुरप्रीत जी..
बहुत खूब अशआर कहे हैं आपने ..
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रात दिन सीने की दीवारों पे ये पटके है सर
ऐ खुदा इस बुत में तूने डाल दी क्या चीज़ है ॥
हिज्र में जिस ने सुनी हों ग़ज़लें तन्हा बैठ कर
उससे जाकर पूछिए ये शायरी क्या चीज़ है ॥....ये दोनों मेरे लिये हासिल-ए-ग़ज़ल अशआर है ..
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एक दो मामूली बातों पर ध्यान दिलाना चाहूँगा ..
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मतले का ऊला मिसरा थोडा उलझा हुआ है ...
इसे यूँ कर के देखिये ..
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मेरी आँखों में तू अक्सर ढूँढती क्या चीज़ है
ये बता मुझ को कि तेरी खो गई क्या चीज़ है ॥
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तेरे ख्वाबों से उठा तुझ को न पाया सामने..उठने और जागने में फ़र्क है ...किसी तरक़ीब से उठा को जागा में बदलिए और फिर देखिये ..
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यूँ तो जीने का तजुर्बाहै बहुत हम को मगर.... तज़रबा सही शब्द है जिसका वज़'न 212 है .. इसे भी
तज़रबा जीने का यूँ तो है बहुत हम को मगर ....कर के देखिये ..
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नाम है गुरप्रीत सिंह है शौक लिखने का मुझे ....यहाँ नाम के आगे-पीछे है ..अडचन डाल रहा है ..
शौक लिखने का मुझे है नाम है गुरप्रीत सिंह.....
सुन्दर भावों और अशआर से सजी हुई ग़ज़ल के लिये बधाई
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