न बैठो इतने करीब मेरे कहीं मेरा दिल मचल न जाए
अब इतनी भी दूर तो न जाओ ये जान मेरी निकल न जाए ।।
जो बर्फ़ अरमानों पर जमी है तेरी तपिश से पिघल न जाए
पिघल गई गर तो मेरी आँखों की झील भर के उछल न जाए ।।
बड़ा ही शातिर ये वक़्त है फिर नई कोई चाल चल न जाए
मिलन से पहले घड़ी विरह की मिलन का लम्हा निगल न जाए ।।
तेरी छुअन से हुई वो जुम्बिश की दिल की धड़कन बिखर गई है
न छूना मुझ को सनम दुबारा ये साँस जब तक सँभल न जाए ।।
मैं उस की खातिर हूँ सज के बैठा है शौक दिल में और एक डर भी
कि मेरे कातिल को फ़िर भी मुझ में कमी कहीं कोई खल न जाए ।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय गुरप्रीत भाई , कठिन बहर पर बहुत अच्ज्छी गज़ल कही है .. आपने , हार्दिक बधाइयाँ । बाक़ी उचित सलाह गुणि जन दे ही चुके हैं , खयाल की जियेगा ।
आद० गुरप्रीत सिंह जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है बहुत बहुत बधाई आपको मिसरे में बहुत ज्यादा मात्रा गिराने से भी कई बार लय बिगड़ जाती है हालांकि आपके मिसरे सभी विधान के अनुसार सही हैं बस थोड़े शब्द इधर उधर करने से लय बेहतर हो जायेगी नीलेश भैया के कहने का तात्पर्य भी शायद यही होगा
आपका मतला अपने हिसाब से कहने की कोशिश की है शायद आपको ठीक लगे
करीब इतने न मेरे बैठो कहीं मेरा दिल मचल न जाए
न दूर इतने भी मुझसे जाओ कहीं मेरी जाँ निकल न जाए
देखिये बहुत कम मात्रा गिराने से लय पर असर ...
नहीं... किसी एक मिसरे पर नहीं था मेरा कमेंट .....
अपनी ग़ज़ल को फिल्म गुलामी के सुनाई देती है जिस की धडकन की धुन पर बिना अटके गुनगुनाइये ..जहाँ अटकाव हो वहाँ तरमीम कीजिये ....अपने आप लय सध जायेगी
झील उछल न जाये को उबल न जाये कर लें
.
सादर
आदरणीय समर कबीर जी बहुत बहुत शुक्रिया .... लय अस्ल में होती क्या चीज़ है इस के बारे में कुछ अधिक जानना चाहता हूँ ,,, क्या बह्र ही लय है या मिसरे में अलफ़ाज़ की तरतीब से भी लय प्रभावित होती है। . शुक्रिया
आदरणीय आशुतोष जी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय रवि जी बहुत बहुत शुक्रिया
शुक्रिया आदरणीय नीलेश जी। .. आपने कहा ....... थोडा लय को और साधिये.
इसके बारे में थोड़ा अधिक जानना चाहता हूँ
"न छूना मुझ को सनम दुबारा ये साँस जब तक सँभल न जाए"
क्या इस का मतलब ये है की जैसे इस मिसरे में "न छूना मुझ को" इसे "12122 " पढ़ने के लिए छूना के "ना" को गिरा कर "न" की तरह पढ़ना पड़ रहा है ,,क्या इस वजह से लय भंग हो रही है ? और क्या इसे "न मुझ को छूना" करने से ये बेहतर लय में लगेगा... क्या मैं सही समझ पाया हूँ ?
या
लय का मतलब मिसरे में शब्दों की तरतीब से है। .जैसे
"मैं उस की खातिर हूँ सज के बैठा है शौक दिल में और एक डर भी"
इस मिसरे में शब्दों का क्रम कुछ सही नहीं लग रहा
कृपया मार्ग दर्शन करें
"अब इतनी भी दूर तो न जाओ ये जान मेरी निकल न जाए ।।"
इस मिसरे को अगर इस तरह कहा जाए तो क्या बेहतर रहेगा सर जी
"यूँ दूर इतनी भी तो न जाओ ये जान मेरी निकल न जाए ।।"
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