For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

न बैठो इतने करीब मेरे कहीं मेरा दिल मचल न जाए

अब इतनी भी दूर तो न जाओ ये जान मेरी निकल न जाए ।।

 

जो बर्फ़ अरमानों पर जमी है तेरी तपिश से पिघल न जाए

पिघल गई गर तो मेरी आँखों की झील भर के उछल न जाए ।।

 

बड़ा ही शातिर ये वक़्त है फिर नई कोई चाल चल न जाए

मिलन से पहले घड़ी विरह की मिलन का लम्हा निगल न जाए ।।

 

तेरी छुअन से हुई वो जुम्बिश की दिल की धड़कन बिखर गई है

 न छूना मुझ को सनम दुबारा ये साँस जब तक सँभल न जाए ।।

 

मैं उस की खातिर हूँ सज के बैठा है शौक दिल में और एक डर भी

कि मेरे कातिल को फ़िर भी मुझ में कमी कहीं कोई खल न जाए ।।

 

       (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1712

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2017 at 9:47am

आदरणीय गुरप्रीत भाई , कठिन बहर पर बहुत अच्ज्छी गज़ल कही है .. आपने , हार्दिक बधाइयाँ । बाक़ी उचित सलाह  गुणि जन दे ही चुके हैं , खयाल की जियेगा ।

Comment by नाथ सोनांचली on April 20, 2017 at 8:38am
भाई गुरप्रीत जी अच्छी ग़ज़ल के लिए दाद और मूबरकबाद, और आपकी ग़ज़ल के माध्यम से इतनी उचित चर्चा से मुझ जैसे लोगो को बहुत फायदा हुआ, सभी गुनी जनों का भी हृदय से आभार
Comment by Gurpreet Singh jammu on April 19, 2017 at 7:09pm
आदरणीया राजेश जी..आपने समय देकर ग़ज़ल पढ़ी और इस पर उत्साहवर्धक टिप्पणी की...आपका बहुत बहुतधन्यवाद....आपका सुझाया मतला भी बहुत अच्छा है..
Comment by Gurpreet Singh jammu on April 19, 2017 at 7:05pm
धन्यवाद आदरणीय नीलेश जी... मैं जानता हूँ कि आपक कॉमेंट किसी एक मिसरे पर नहीँ था...मैने तो बस बात को अच्छी तरह समझने के लिए उदाहरण के तौर पर मिसरे को लिया था...
जी हाँ सर जी...इस गाने कि धुन पर गुनगुनाने से कई जगह अटकाव पैदा हो रहा है...इसे दूर करने कि कोशिश करता हूँ..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 19, 2017 at 5:42pm

आद०  गुरप्रीत सिंह जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है बहुत बहुत बधाई आपको मिसरे में बहुत ज्यादा मात्रा गिराने से भी कई बार लय बिगड़ जाती है हालांकि आपके मिसरे सभी विधान के अनुसार सही हैं बस थोड़े शब्द इधर उधर करने से लय बेहतर हो जायेगी नीलेश भैया के कहने का तात्पर्य भी शायद यही होगा 

आपका मतला अपने हिसाब से कहने की कोशिश की है शायद आपको ठीक लगे 

करीब इतने   न मेरे बैठो कहीं मेरा दिल मचल न जाए 

न दूर इतने  भी मुझसे जाओ कहीं मेरी जाँ निकल न जाए  

देखिये बहुत कम मात्रा गिराने से लय पर असर ...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2017 at 5:38pm

नहीं... किसी एक मिसरे पर नहीं था मेरा कमेंट ..... 
अपनी ग़ज़ल को फिल्म गुलामी के सुनाई देती है जिस की धडकन की धुन पर बिना अटके गुनगुनाइये ..जहाँ अटकाव हो वहाँ तरमीम कीजिये ....अपने आप लय सध जायेगी 
झील उछल न जाये को उबल न जाये कर लें 
.
सादर 

Comment by Gurpreet Singh jammu on April 19, 2017 at 10:23am

आदरणीय समर कबीर जी बहुत बहुत शुक्रिया .... लय अस्ल में होती क्या चीज़ है इस के बारे में कुछ अधिक जानना चाहता हूँ ,,, क्या बह्र ही लय है या मिसरे में अलफ़ाज़ की तरतीब से भी लय प्रभावित होती है। . शुक्रिया 

Comment by Gurpreet Singh jammu on April 19, 2017 at 10:19am

आदरणीय आशुतोष  जी बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Gurpreet Singh jammu on April 19, 2017 at 10:19am

आदरणीय रवि जी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Gurpreet Singh jammu on April 19, 2017 at 10:18am

शुक्रिया आदरणीय नीलेश जी। .. आपने कहा ....... थोडा लय को और साधिये.
इसके बारे में थोड़ा अधिक जानना चाहता हूँ
"न छूना मुझ को सनम दुबारा ये साँस जब तक सँभल न जाए"
क्या इस का मतलब ये है की जैसे इस मिसरे में "न छूना मुझ को" इसे "12122 " पढ़ने के लिए छूना के "ना" को गिरा कर "न" की तरह पढ़ना पड़ रहा है ,,क्या इस वजह से लय भंग हो रही है ? और क्या इसे "न मुझ को छूना" करने से ये बेहतर लय में लगेगा... क्या मैं सही समझ पाया हूँ ?

या

लय का मतलब मिसरे में शब्दों की तरतीब से है। .जैसे
"मैं उस की खातिर हूँ सज के बैठा है शौक दिल में और एक डर भी"
इस मिसरे में शब्दों का क्रम कुछ सही नहीं लग रहा
कृपया मार्ग दर्शन करें

"अब इतनी भी दूर तो न जाओ ये जान मेरी निकल न जाए ।।"
इस मिसरे को अगर इस तरह कहा जाए तो क्या बेहतर रहेगा सर जी
"यूँ दूर इतनी भी तो न जाओ ये जान मेरी निकल न जाए ।।"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
21 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service