(212-212-212-212)
मेरे सुर से तेरा सुर मिलाना हुआ
और जीवन मेरा इक तराना हुआ ॥
मैने देखी है इक चलती फ़िरती ग़ज़ल
है मिजाज इस लिए शायराना हुआ ॥
आइए हमनशी बैठिए पलकों पर
ये कहें ख्वाब में कैसे आना हुआ ॥
थी दवा तो वही काम तब कर गई
जब तेरा अपने हाथों पिलाना हुआ ॥
वो भी लगने लगे अब मुझे अपने से
"जब से गैरों के घर आना जाना हुआ ॥"
हज़्म कैसे करेंगे मेरी ये ग़ज़ल
वो जो खाते हैं बारीक छाना हुआ ॥
देख के तुझ को ये ठण्डी आहें भरे
दिल मेरा बर्फ़ का कारखाना हुआ ॥
(मौलिक एवम अप्रकाशित)
Comment
आ. भाईगुरप्रीत जी सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
आदरणीय गुरप्रीत जी मुबारक बाद कुबूल करें इस गजल के लिये और आपकी शेर कहने के प्रति लगन के लिये
मैने देखी है इक चलती फ़िरती ग़ज़ल
है मिजाज इस लिए शायराना हुआ ॥ क्या कहने इस शेर के वाह बधाई
कमोबेश शाईरी की शुरुआत इसी तरह के मिजाज़ से होती है :-)))
आदरणीय , गुरप्रीत भाई , बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने .. शे र दर शेर आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आप ओबीओ पर बने रहें आदरणीय गुरप्रीत जी, समयानुसार आप बहुत कुछ सीखते जायेंगे. इस पटल पर ऐसे ही सभी सीखते हैं.
आपकी कोशिश क़ामयाब हुई है. और आपकी लगन का स्वागत है.
और देखिए, आ० नीलेश भाई ने किस मुलामियत से आपके उक्त शेर के सानी मिसरे में जान डाली है. यही ग़ज़ल कहने की ख़ासियत है. वैसे यह अंदाज़ सीखते-सीखते आती है. लेकिन इसका गुमान तो होना ही चाहिए. ग़ज़ल वस्तुतः बातचीत के अंदाज़ को मिसरों में पिरोने की कला है. इसीलिए ग़ज़लों में प्रयुक्त हुए शेरों के मिसरे किसी गेय कविता या गीत जैसी विधाओं की पंक्तियों से अलग हुआ करते हैं. इस तथ्य के प्रति सचेत रहा करें.
शुभेच्छाएँ
हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आदरणीय नीलेश जी,,,,आपकी बात का ध्यान रखूँगा...... हालाँकि फिलहाल मुझे यह समझना थोड़ा मुश्किल लग रहा है
आ. गुरप्रीत जी..
बहुत ख़ूब....
आप की उत्तरोत्तर प्रगति साफ़ दिखाई दे रही है ..
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आइए हमनशी बैठिए पलकों पर
बोलिए ख्वाब में कैसे आना हुआ ॥.... या
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आइए हमनशी बैठिए पलकों पर
ये कहें!! ख्वाब में कैसे आना हुआ ॥ क्या अधिक ग़ज़ल जैसा है ....यहाँ थोडा वक़्त दिया कीजिये ..
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सादर
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