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दिल के तख़्त पे हाए हमने किस ज़ालिम को बिठा लिया 
दिल की बस्ती को ही उजाड़ा उसने ऐसा काम किया।

 

'लुटे हुए अरमानों को वापिस लाऊंगा' बोला था  
लेकिन जो था पास हमारे वो भी हमसे छीन लिया।

 

अब कहता है, इश्क़ में सब आशिक़ ऐसा ही करते हैं 
मैंने भी गर झूठे वादे किए तो कोई पाप किया।

 

कितनी बार रकीबों ने अरमानों के सर काटे हैं 
और वो बस इतना कहते हैं बुरा किया भई बुरा किया।

 

ये शुहरत का युग है झाड़ी ने ये बात समझ ली है 
खार को गुलदस्ता कहने का तभी तो भारी दाम दिया।

 

अब लगता है पहला दिलबर इससे कुछ तो अच्छा था 
इतना भी वो बुरा नहीं था जितना उसे बदनाम किया। 
              (मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by Gurpreet Singh jammu on May 9, 2017 at 10:10am

गुणीजनों के सुझावों के मुताबिक और भी बदलाव किए हैं ग़ज़ल में 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 8, 2017 at 11:48am

आ. भाई गुरप्रीत जी  सुंदर गजल हुई है  हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 10:31am
आदरणीय गुरप्रीत जी हार्दिक बधाई स्वीकारें इस उम्दा गजल को कहने के लिए!
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 6, 2017 at 9:27pm
शुक्रिया आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी .. जी यही तो इस मंच कू विशेषता है
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 6, 2017 at 9:25pm
संशय दूर करने के लिए शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी..... मशहूरी को मैने पब्लिसिटी के भाव में लिया था..इसलिए थोड़ा कन्फ्यूज हो गया था
Comment by नाथ सोनांचली on May 6, 2017 at 8:59pm
आद0 गुरप्रीत भाई जी सादर अभिवादन, बेहतरीन गजल के लिए बधाई, आप की ग़ज़ल पर हुई चर्चा से हमें भी लाभ हुआ। आद0 समर साहब का भी धन्यवाद,
Comment by Samar kabeer on May 6, 2017 at 4:17pm
शब्द 'मशहूर' शुहरत से ही बना है,इसलिये ठीक है,भाव भी वही रहेगा ।
Comment by Samar kabeer on May 6, 2017 at 4:17pm
शब्द 'मशहूर' शुहरत से ही बना है,इसलिये ठीक है,भाव भी वही रहेगा ।
Comment by Samar kabeer on May 6, 2017 at 4:15pm
निलेश जी 'बिठा'शब्द शब्दकोष के हिसाब से सही है ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 5, 2017 at 10:34pm
आदरणीय डा. आशुतोष जी प्रयास को पसंद करने के बहुत बहुत शुक्रिया

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