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सौदें होते हैं तन के
रिश्ते-नाते हैं धन के ।
याद बहुत आते हैं अब
मुझको दिन वो बचपन के ।
मीठी-मीठी यादें सब
ताने-बाने हैं मन के ।
कितने ही होते हैं दुख
माँ को लालन-पालन के ।
ग़ुर्बत के शिकवें हैं,ये
ख़ाली सारे बरतन के ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 7:51pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय भाव सुंदर हैं | बधाई स्वीकारें |

Comment by Mohammed Arif on May 30, 2017 at 10:19am
बहुत-बहुत आभार आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 30, 2017 at 10:04am
Comment by Mohammed Arif on May 28, 2017 at 5:58pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय बृजेश कुमार जी ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 28, 2017 at 5:54pm
बहुतखूब आदरणीय आरिफ जी
Comment by Mohammed Arif on May 28, 2017 at 7:48am
बहुत-बहुत शुक्र गुज़ार हूँ आदरणीय गुरप्रीत जी ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 27, 2017 at 9:36pm
बहुत खूब आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है

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