उसने मुझको देखा है,
शायद कुछ तो सोचा है।
मंज़र कुछ ऐसा है जो,
उसकी आँखों देखा है।
मुश्क़िल राहों पे अब वो,
धीरे-धीरे चलता है।
कहता है वो सच को सच
सबको कड़वा लगता है।
उस पे शक़ करना कैसा,
वह तो जाँचा परखा है।
सुख-दुख के मौसम को, वह
ख़ामोशी से सहता है।
बारिश हो जाने से अब,
मौसम बदला-बदला है।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
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आ० मोहम्मद आरिफ साहिब, शीर्षक दुरुस्त कर दिया गया हैI सादरI
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