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ग़ज़ल - जीवन में मत जमीर को पलभर सुलाइए (बह्र - 221 2121 1221 212)

जीवन में मत जमीर को पलभर सुलाइए।
सोने लगे तो फेंक के पानी जगाइए।

बेगैरतों के शह्र में रहते जो शौक से,
अपने घरों की लाज को उनसे बचाइए।

अनमोल रत्न शील ही होता जहान में,
यूँ कौड़ियों के मोल इसे मत लुटाइए।

जिसने दिये हों सात वचन सात जन्मों के,
केवल उसी के सामने घूँघट उठाइए।

बीमारियाँ चरित्र की लगती हैं छूत से,
पीड़ितजनों के पास जियादा न जाइए।

बस दागदार करते जो घर की दीवारों को,
वैसे चिराग हाथ से अपने बुझाइए।

झुकने की बात से ही उबल जाता खूं बहुत,
भूले से ऐसी बातें न हमको सुनाइए।

क्यों कर रहे हैं आप जमाने से मिन्नतें,
कुछ आपके रहे नहीं क्या हम, बताइए।

मधुमक्खियों से खौफ अगर खा रहा जिगर,
मन में पुए न मीठे शहद के पकाइए।

वो दोस्ती का हाथ बढ़ाया था आपने,
बेशर्मियों से मत यूँ नजर अब चुराइए।

"गौरव" हुआ भरम उसे, है वो ही आसमां,
जा के उसे जमीनी हकीकत दिखाइए।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2013 at 9:56am

अनुमोदन हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय राणा प्रताप सर।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 5, 2013 at 9:43am

वाह! बहुत खूब, आदरणीय अजितेंदु जी, बहुत सुंदर गजल हार्दिक बधाई

Comment by Abhinav Arun on August 5, 2013 at 5:48am

जीवन में मत जमीर को पलभर सुलाइए।
सोने लगे तो फेंक के पानी जगाइए।

वाह गौरव जी क्या कहने शानदार अशआर हुए है बधाई बहुत बहुत !!

Comment by बृजेश नीरज on August 4, 2013 at 7:38pm

बहुत खूब! मजा आ गया! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by MAHIMA SHREE on August 4, 2013 at 2:20pm

गौरव" हुआ भरम उसे, है वो ही आसमां,
जा के उसे जमीनी हकीकत दिखाइए।.... वाह आदरणीय गौरव जी बहुत ही शानदार प्रस्तुति . हरेक शेर जबरदस्त है .. बहुत दिनों के बाद आप आये ?... बहुत-२ बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 3, 2013 at 10:37pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है गौरव साहब ....जो अशार पसंद आये कोट कर रहा हूँ

बीमारियाँ चरित्र की लगती हैं छूत से,
पीड़ितजनों के पास जियादा न जाइए।

क्यों कर रहे हैं आप जमाने से मिन्नतें,
कुछ आपके रहे नहीं क्या हम, बताइए।

"गौरव" हुआ भरम उसे, है वो ही आसमां,
जा के उसे जमीनी हकीकत दिखाइए।

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