"अंकल जी, बर्थडे का सामान दे दो , ये छोटा वाला केक कितने में मिलेगा ?" - सोनू ने बेकरी वाले से पूछा।
"डेढ़ सौ रुपये का"
जवाब सुनकर सोनू आँखें फाड़े साथियों की तरफ देखने लगा । सभी ने अपनी जेबों से पैसे निकाले। कुछ सिक्के, कुछ पुराने फटे से नोट, कुल जमा पैंतीस रुपये थे। छोटे भाई का बर्थडे तो मनाना ही है।
"लो अंकल जी, पैंतीस रुपये में छोटा सा कोई केक और बाक़ी सामान पैक कर दो !" - सोनू ने निराश हो कर कहा। बेकरी वाले को हँसी आ गई । फटे पुराने से कपड़े पहने हुए बच्चों को देखकर काउंटर के पास खड़े वर्मा जी का मन अपना वाला केक उन बच्चों को देने को हुआ, लेकिन क्या कर सकते थे, पत्नी की पसंद का बुक किया हुआ केक था ।
इस बीच सोनू ने साथियों से कहा- "देखो , केक रहने देते हैं, टोफियां या समोसे ले लेते हैं। बगल वाले डी.जे. वाले अंकल से कह देंगे कि दुकान से ही तेज़ गाने बजा दें, अपन गोलू के घर में जम के डांस करेंगे, ठीक है न !"
"सोनू, हमने तो पहले ही कहा था कि रहने दे पार्टी-वार्टी, अपन 'रईसों वाला' नहीं, 'अपना वाला' जश्न मनायेंगे , हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ाके, गायेंगे चालीसा और भजन !" - गोलू ने सोनू का हाथ खींचकर कहा ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बच्चों का छोटा सा संसार और ,जब छोटी छोटी इच्छाओं को बड़ी समझदारी ओढ़नी पड़ती है तब सारे नारे और वादे खोखले लगते हैं , कोमल भावनाओं को बहुत सार्थक शब्द दिए हैं आपने इस कथा के माध्यम से ,हार्दिक बधाई आपको आदरणीय उस्मानी जी,कथा का शीर्षक भी गज़ब का है
बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है आदरणीय उस्मानी जी बधाई
आदरणीय उस्मानी जी ..वाकई अभावों में भी किस तरह हम जी लेते हैं ..दिल को छू लेने वाली इस शानदार लघुकथा के लिए ह्रदय से बधाई सादर
बहुत ही उम्दा रचना....हार्दिक बधाई आपको । सादर
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