मुक्तक- 1
भला होता है वो कैसा जिसे सब प्यार कहते है
नही यह भी पता मुझको किसे सब यार कहते है
न जाना मैं कभी इनको न पहचाना कभी इनको
यही कारण मुझे सब आदमी बेकार कहते है
मुक्तक -2
नही होता अगर ये दिल तो हम भी शान से जीते
लड़ा कर जाम से हम जाम तुम्हारे साथ में पीते
मगर कमबख्त दिल मेरा हमेशा नाम ले उसका
भुलाने ही नही देता पलों को साथ जो बीते
मुक्तक -3
करू क्या काम दिन भर मै मुझे पत्नी बताती है
झुका कर के नज़र चलना मुझे हरदम सिखाती है
नज़र मेरी चली जाये अगर अपनी पड़ोसन पे
चला बेलन वही दिन में मुझे तारे दिखाती है
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
Comment
बहोत खूब सुन्दर मुस्तक, सुन्दर गजल पर बधाई
वाह..सुन्दर मुक्तक हुए है!हार्दिक बधाई आ० अखंड जी!
आदरणीय अखंड जी बहुत बेहतरीन मुक्तक है आपको बधाई
निवेदन-
न जाना मैं कभी इनको न पहचाना कभी इनको ... इस मैं को है किया जा सकता है
लड़ा कर जाम से हम जाम तुम्हारे साथ में पीते.... तुम्हारे के कारण मिसरा बेबह्र हो रहा है इसे तेरे/उनके किया जा सकता है
हा हा हा ,,, ये बहुत बढ़िया हुआ है-
करू क्या काम दिन भर मै मुझे पत्नी बताती है
झुका कर के नज़र चलना मुझे हरदम सिखाती है
नज़र मेरी चली जाये अगर अपनी पड़ोसन पे
चला बेलन वही दिन में मुझे तारे दिखाती है
तीनों ही मुक्तक बेहतरीन हैं पर तीसरे की बात निराली है .बधाई
बहुत बढ़िया वाह
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