21.06.2016 कल से आगे .....
महाराज दशरथ की आयु प्रायः 35 वर्ष की हो चुकी थी। महारानी कौशल्या से विवाह किये 11 वर्ष गुजर गये थे किंतु अयोध्या को अभी तक उत्तराधिकारी प्राप्त नहीं हुआ था। एक दिन सोते हुये अचानक वे चैंक कर उठ बैठे। उन्होंने अजीब स्वप्न देखा था। उनकी माता इन्दुमती और पिता अज उन्हें प्रताड़ित कर रहे थे कि वे अभी तक पितृ ऋण नहीं चुका पाये हैं। माता की तो वस्तुतः उन्हें कतई याद ही नहीं थी, बस चित्रों में ही उन्हें देखा था। पिता बताते थे कि बहुत छोटे बालक थे तभी माता स्वर्गवासी हो गयी थीं। दशरथ माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। पिता उनकी माता के वियोग में अत्यंत क्लांत रहते थे। जैसे ही दशरथ मुश्किल से राज्य सम्हालने योग्य हुये, उन्होंने उन्हें राज्य सौंप कर अन्न-जल त्याग दिया। उनका रुग्ण शरीर पहले ही जर्जर हो चुका था उन्हें अधिक दिन अनशन नहीं करना पड़ा, शीघ्र ही मृत्यु ने उन्हें अपनी गोद में सहेज लिया।
दशरथ के अचानक उठ बैठने से महारानी कौशल्या की भी नींद खुल गयी।
‘‘क्या हुआ महाराज ?’’ दशरथ के अचानक उठ बैठने से कौशल्या घबरा उठी थीं। वे धीरे-धीरे दशरथ की पीठ पर हाथ फेरने लगीं। - ‘‘कुछ अस्वस्थता महसूस कर रहे हैं। राजवैद्य को बुलाऊँ ?’’
‘‘नहीं महारानी ! कोई शारीरिक व्यथा नहीं है।’’
दशरथ सदैव शासन व्यवस्था में अत्यंत सतर्क रहते थे कि कहीं उनके किसी आचरण से उनके ख्यातनाम पूर्वजों की सुकीर्ति को बट्टा न लग जाये। समय आने पर उन्होंने दक्षिण कोशल की राजकुमारी कौशल्या से विवाह किया। उत्तर और दक्षिण कोशल के रिश्ते अच्छे नहीं थे। कौशल्या के पिता ने अपनी पुत्री दशरथ को देने के स्थान पर युद्ध करना बेहतर समझा किंतु युद्ध में परास्त होने के बाद कौशल्या का दशरथ से विवाह करने के सिवा उनके समक्ष कोई चारा नहीं था।
विवाह के उपरांत दोनों राष्ट्रों के संबंध निश्चित रूप से बेहतर हो गये। कौशल्या को भी दशरथ ने पूरे सम्मान से महारानी का दर्जा दिया।
‘‘फिर क्या बात है महाराज ? कहीं फिर वही दुःस्वप्न तो ...’’ कौशल्या ने बात अधूरी छोड़ दी।
‘‘हाँ ! आज फिर स्वप्न में माता और पिता दोनों पितृऋण चुकाने की बात कर रहे थे। क्या करूँ ? सारे उपाय तो कर लिये।’’
‘‘महाराज अब दूसरा विवाह कर ही लीजिये। और कोई मार्ग नहीं है।’’
‘‘क्या कह रही हैं आप ? स्वयं ही अपनी सौत लाने की बात कर रही हैं।’’
‘‘सौत क्यों होगी वह ? उसे मैं अपनी छोटी बहन बना कर रखूँगी।’’
‘‘किंतु हमारे कुल में बहुविवाह की प्रथा नहीं है महारानी।’’
‘‘तो क्या हुआ ! आप दूसरा विवाह प्रथा के लिये नहीं पितृऋण चुकाने के लिये करेंगे। आर्यावर्त में सम्राटों के कई-कई विवाह सामान्य बात है महाराज।’’
‘‘हूँ !!! सोचते हैं इस बारे में भी।’’
‘‘अब सोच विचार में समय नष्ट मत कीजिये। बस निश्चय कर ही लीजिये। महाराज अश्वपति की षोडषी कन्या कैकेयी की सुन्दरता और वीरता दोनों के ही किस्से पूरे ब्रह्मावर्त क्षेत्र में फैल रहे हैं। प्रातः ही महाराज के पास संदेश लेकर दूत भेज दीजिये।’’
‘‘महारानी किसी सम्राट् का विवाह भी मात्र व्यक्तिगत रिश्ता नहीं होता, पूरी राजनीति होती है उसके पीछे।’’
‘‘तो उसमें भी शंका क्या महाराज ! कैकयराज अश्वपति आपके पुराने मित्र हैं। फिर क्या कमी है आपमें या अयोध्या के साम्राज्य में जो कोई भी सम्राट् आपसे रिश्ता जोड़ने में हिचकेगा। क्या ऊँच-नीच देखेंगे महाराज अश्वपति, मुझे तो समझ में नहीं आता ?’’
‘‘हमारी और कैकेयी की वयस में कितना अन्तर है, यह नहीं देख रहीं आप ?’’
‘‘वयस से क्या कमी आ गयी है आपमें ? बल्कि परिपक्व और हो गये हैं। आपकी सामथ्र्य कोई मुझसे पूछे’’ कहते हुये महारानी स्वयं लजा गयीं।’’
‘‘पर कैकयराज आपसे तो पूछने नहीं आयेंगे।’’
‘‘कोई तर्क नहीं महाराज बस कल भोर होते ही आप प्रस्वाव भेज ही दीजिये।’’
‘‘आप समझ नहीं रही हैं महारानी। अगर अश्वपति ने इनकार कर दिया तो एक इतने पुराने मित्र से संबंध बिगड़ जायेंगे। उनसे संबंध बिगाड़ना बहुत बड़ी कीमत होगी जो इस समय कोशल नहीं चुका सकता।’’
‘‘नहीं बिगड़ जायेंगे महाराज।’’
‘‘फिर हमारी ओर से प्रस्ताव भेजना हमारी कमी भी दर्शाता है।’’
‘‘महाराज यह कमी जो जग जाहिर है। ढकी बात को ढांक कर रखा जाता है। जब खुलासा हो ही गया तो अब ढाकने का क्या प्रयोजन !’’
‘‘तो आप मानेंगी नहीं महारानी ?’’
‘‘नहीं महाराज।’’
‘‘अच्छा अब इस समय तो सो जाइये। प्रातः देखेंगे।’’
‘‘अब भी आप टाल रहे हैं।’’
‘‘अच्छा बाबा भेज देंगे। अब तो प्रसन्न ?’’
‘‘जी महाराज !’’ कहकर कौशल्या ने महाराज को आलिंगन में भर लिया। महाराज ने भी उन्हें बाहों में समेट लिया।
दूसरे दिन कौशल्या ने भोर होते ही फिर वही बात छेड़ दी। छेड़ क्या दी पीछे पड़ के रह गयीं। आखिरकार महाराज को अश्वपति के पास संदेशा लेकर दूत भेजना ही पड़ा।
क्रमशः
मौलिक व अप्रकाशित
.......................................................................................................... सुलभ अग्निहोत्री
Comment
कौशल्या ने स्वयं दशरथ को कैकई से विवाह करने के लिए प्रेरित किया था . राजनैतिक कारणों से विवाह सम्बन्ध बनाने का इतिहास भी काफी पुराना है , बहुत अच्छी लग रही है आपकी श्रंखला ,
सौरभ जी आपका सुझाव उचित है। मूल प्रति में तदनुरूप सुधार कर दूँगा।
आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी !
वाह ! बढ़िया !!
वैसे, कथा में जब इतनी संज्ञाएँ सुचारू रूप से निबद्ध हुई हैं, कौशल्या के पिता का नाम भी दे ही देना था, जो कि सुकौशल या सुकुशल के नाम से जाने जाते थे और ’दक्षिण कोशल’ के नरेश थे जो आज वर्तमान में, पूर्वी मध्यप्रदेश या आजका छत्तीसगढ़ का परिक्षेत्र था. यह उत्तरी विस्तार में आज के इलाहाबाद के दक्षिण तक आता था.
//दशरथ सदैव शासन व्यवस्था में अत्यंत सतर्क रहते थे कि कहीं उनके किसी आचरण से उनके ख्यातनाम पूर्वजों की सुकीर्ति को बट्टा न लग जाये। समय आने पर उन्होंने दक्षिण कोशल की राजकुमारी कौशल्या से विवाह किया। उत्तर और दक्षिण कोशल के रिश्ते अच्छे नहीं थे। कौशल्या के पिता ने अपनी पुत्री दशरथ को देने के स्थान पर युद्ध करना बेहतर समझा किंतु युद्ध में परास्त होने के बाद कौशल्या का दशरथ से विवाह करने के सिवा उनके समक्ष कोई चारा नहीं था।
विवाह के उपरांत दोनों राष्ट्रों के संबंध निश्चित रूप से बेहतर हो गये। कौशल्या को भी दशरथ ने पूरे सम्मान से महारानी का दर्जा दिया।//
उपर्युक्त पॉरा पैबन्द की तरह वार्तालाप के बीच में आगया है आदरणीय. इसे दशरथ के अचानक उठ बैठने से महारानी कौशल्या की भी नींद खुल गयी.. के तुरत बाद ही दे देना था. और फिर इसके बाद दशरथ और कौशल्या का वार्तालाप प्रारम्भ कराना था. ऐसा मुझे लगता है.
रोचक कथा आगे का इन्तजार
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