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ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा बस एक पल में आ गया,
नाम तेरा इक महक बन साँस में जब छा गया
उम्र भर भटका किये, इक पल सुकूँ की चाह में,
वो मिले तो रूह बोली, तूू सफ़ीना पा गया।
बस जुनूँ था आसमां में घर नया अपना बने
इस जुनूँ की चाह में सब घर ज़मीं का ढा गया
था किया वादा लड़ूँगा भूख से जो फ़र्ज है
भूख मेरी ही बड़ी थी सब अकेला खा गया
अब मसीहा सर झुकाकर खूब सेवा में लगे
लग रहा है दिन चुनावों का सुहाना आ गया
-- क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
ग़ज़ल सीखने के लिए 'वीनस केसरी'साहिब की किताब "ग़ज़ल की बाबत" बहुत उपयोगी है,अनाजोंन पर सर्च करें, आन लाइन मिल जाएगी ।
आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. इस इस्लाह का तहे दिल से शुक्रिया. आज एक और बात पता लगी. सादर.
आदरणीय भाई क़मर जौनपुरी साहब, जो आदरणीय समर कबीर साहब कह रहे हैं, वो ही हस्बे काइदा है, मैं भी आपकी तरह एक तालिबे इल्म हूँ, बस जनाब समर कबीर साहब की शागिर्दी में कुछ सीख लेने की तमन्ना है. सादर
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कृपया देखें, "अब मसीहा सर झुका कर ख़ूब सेवा में लगे' इस मिसरे में भी 'झुका कर' में ऐबे तनाफुर तो रह ही गया.//
जनाब राज़ साहिब "झुका कर"में ऐब-ए-तनाफ़ुर नहीं है,वो इसलिए कि "झुका" शब्द के "क" में आ की मात्रा है,"झुक कर'' शब्द होता तब ये दोष होता,उम्मीद है आप समझ गए होंगे ।
आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब.
कृपया देखें, "अब मसीहा सर झुका कर ख़ूब सेवा में लगे' इस मिसरे में भी 'झुका कर' में ऐबे तनाफुर तो रह ही गया. इसे यूँ कर सकते हैं.
"अब मसीहा भी झुका सर ख़ूब सेवा में लगे". सादर
मोहतरम जनाब समर कबीर साहब बहुत बहुत शुक्रिया। आपने जिन दोषों की चर्चा की उनका नाम ही पहली बार सुन रहा हूँ। उम्मीद है आप मोहतरम उस्तादों की रहनुमाई से धीरे धीरे ज़रूर सीख जाऊंगा। अभी मैं मात्र 10 दिन का विद्यार्थी हूँ ग़ज़ल का।
कोई अच्छी पुस्तक का नाम सुझाएँ जिसे पढ़कर और अच्छी तरह सीख सकूँ।
जनब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही आपने, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
' तुम मिले तो रूह बोली, रुक सफ़ीना पा गया'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़र है "तुम मिले''
इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'वो मिले तो रूह बोली तू सफ़ीना पा गया'
' अब मसीहा सर झुकाकर खूब सेवा कर रहे'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें "कर रहे"
"अब मसीहा सर झुका कर ख़ूब सेवा में लगे'
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