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बच्चे रस्ता देखा करते पंछी के घर आने तक
पंछी दाना देता रहता बच्चों के पर आने तक।

सोना जगना गिरना उठना ये सब लक्षण जीवन के
सूखा पत्ता डाली को क्या देखे मंजर आने तक

छोटी लम्बी तन्हाई से क्या अंदाज़ा होता है
सच्चा प्रेमी संगी होगा अंतिम पत्थर आने तक

तू महफ़िल में गाता रहता मैं ही सच्चा रहबर हूँ।
तेरी महफ़िल ज़िंदा है बस सच के ऊपर आने तक

खट्टी मीठी यादें तेरे जीवन का सरमाया हैं
इन यादों को साथी कर ले जीवन पतझर आने तक

-- क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 19, 2018 at 1:22pm

आ. कमर जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधायी ।

Comment by राज़ नवादवी on November 18, 2018 at 10:38am

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे बधाई स्वीकार करें. सादर 

Comment by क़मर जौनपुरी on November 17, 2018 at 11:18pm

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब अजय तिवारी साहब हौसला आफ़ज़ाई के लिए।

Comment by Ajay Tiwari on November 17, 2018 at 5:08pm

आदरणीय कमर साहब, खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. 

Comment by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 11:03pm

बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब। आपकी टिप्पणी से ग़ज़ल मुकम्मल हो गई।

सरमाया के बारे में ग़लतफ़हमी हो गई। हिंदी में पूँजी शब्द स्त्रीलिंग है, इसलिए यह ग़लती हो गई। शुक्रिया सुधार हेतु।

Comment by Samar kabeer on November 15, 2018 at 10:56pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

खट्टी मीठी यादें तेरे जीवन की सरमाया हैं'

इस मिसरे में "सरमाया" शब्द पुल्लिंग है,इसलिए 'की' शब्द की जगह "का" कर लें ।

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