दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.
दिखलाना कार्पण्य समय से पहले ही मरना है.
मंदिर के निर्माण हेतु चन्दा देना कोई दान नहीं.
हवन -कुण्ड में अन्न जलाना भी है कोई दान नहीं.
निज तर्पण के लिए विप्र को धन देना भी दान नहीं.
ईश्वर-पूजा की संज्ञा दे भोज कराना दान नहीं.
दान नहीं नाना प्रकार से मूर्ति -पूजन करना है.
दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.
करना मदद सदा निर्धन की दान इसे ही कहते हैं.
जो पर दुःख शोकाकुल हो इंसान उसे ही कहते हैं.
देय वस्तु पर नेह जिसे नादान उसे ही कहते हैं.
विकलांगों से प्रेम जिसे भगवान उसे ही कहते हैं.
मानव सभी बराबर हैं यह मानवता का कहना है.
दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.
महादलित को ह्रदय लगाकर स्नेह जताना दान है.
शोषित और असहाय हेतु हथियार उठाना दान है.
अत्याचारी -अधम -दस्यु को मार गिराना दान है.
घर पर आये हर मेहमाँ का सेवा -स्वागत दान है.
दान जरुरतमंदों की सूनी झोली को भरना है.
दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.
किस लिए मनुज का जन्म हुआ इसका जिसको है ज्ञान नहीं.
जो उदासीन निज कर्मो से वह जीव है पर इंसान नहीं.
जिसके उर में लालच बसती उसके उर में ईमान नहीं.
अपनी महता के मद में धन देना धन है- पर दान नहीं.
मानवता से हटकर जीना असह्यपूर्ण दुःख सहना है.
दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.
पर स्त्री को बहन समझना दानी का ही कर्म है.
पर की इज्ज़त पर मर जाना दानी का ही धर्म है.
जीव मात्र से प्रेम करो - धर्म-कर्म यह तेरा है
प्रिय, तुम्हारे कर कमलों में मानसरोवर मेरा है
Comment
अरुणजी एवं गुरूजी, रचना की सराहना के लिए धन्यवाद.
पर स्त्री को बहन समझना दानी का ही कर्म है.
पर की इज्ज़त पर मर जाना दानी का ही धर्म है
bahut badhia sir ji
दान धर्म की महिमा बताती यह रचना खूब है बधाई सतीश जी !
गणेशजी और आशीषजी हौसलाअफजाई के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद.
gyaan के रस में सराबोर पंक्तिया| दान को सही ढंग से परिभाषित kar रही है|
नमन
करना मदद सदा निर्धन की दान इसे ही कहते हैं.
जो पर दुःख शोकाकुल हो इंसान उसे ही कहते हैं.
आहा ! एक एक पक्तियां जैसे चुन चुन कर सजाई गई हो, बहुत ही खुबसूरत भाव और उतना ही सुन्दर और सरल प्रवाह, बहुत बहुत बधाई सतीश मापतपुरी जी |
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