मिशन इज ओवर (कहानी )
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अनायास विकास एक दिन अपने गाँव लौट आया. अपने सामने अपने बेटे को देखकर भानु प्रताप चौधरी के मुँह से हठात निकल गया -"अचानक ..... कोई खास बात ......?" घर में दाखिल होते ही प्रथम सामना पिता का होगा, संभवत: वह इसके लिए तैयार न था, परिणामत: वह पल दो पल के लिए सकपका गया ............. किन्तु, अगले ही क्षण स्वयं को नियंत्रित कर तथा अपनी बातों में सहजता का पुट डालते बोला - " ख़ास तो कुछ नहीं पिताजी, एम०ए० की पढ़ाई ख़तम कर गाँव में ही रहकर कुछ करने का विचार है, सो वापस आ गया.क्या करना ठीक होगा, इस पर आपसे राय - विचार करूंगा." पिताजी के चेहरे का भाव पढ़ने की ज़हमत उठाये बिना वह अपनी माँ से मिलने भीतर चला गया.बेटे के इस बदलाव पर चौधरी साहेब को सुखद आश्चर्य हुआ.भानु प्रताप चौधरी के पास खेती -बारी की अच्छी -खासी ज़मीन थी,इसके अलावा लम्बा-चौड़ा कारोबार भी था.वह शुरू से ही चाहते थे कि विकास अपनी पढ़ाई पूरी करके गाँव में ही रहकर उनकी मदद करे.माँ भी विकास की यह बात सुनकर निहाल हो उठीं.उन्हें अपनी कोख पर गर्व हो आया,होता भी क्यों नहीं ...............? पिताश्री की आज्ञा का लफ्ज़- ब-लफ्ज़ पालन कर विकास ने सपूत होने का प्रमाण जो दिया था.
माता -पिता को निहाल कर विकास जब अपने कमरे में आया तो वह हकीकत उसे पुन: गलबाँही देने लगी, जिसे बार -बार झटकने का नाकाम प्रयास पिछले कई दिनों से वह करता आ रहा था. सच से भाग रहे इंसान को एकांत काट खाने को दौड़ता है. न चाहते हुए भी विकास के मानस -पटल पर अतीत सजीव हो उठा ...............................एम ० ए० की परीक्षा के दौरान ही विकास की तबीयत खराब होने लगी थी. दवा खा -खा कर जैसे -तैसे उसने परीक्षा दी थी. ......................... परीक्षा ख़तम होते ही वह डॉक्टर से मिला ................. चिकित्सा -क्रम में ही जांचोपरांत उसे एच ० आई ० वी० पौजेटिव करार दे दिया गया था. डॉक्टर ने उसे काफी ऊँच-नीच समझाया था ............. ढाढ़स बंधाया था ,पर एड्स का नाम सुनकर विकास सूखे पत्ते की तरह काँप उठा. वह जानता था ................ एड्स के साथ जीने वालों को समाज किस तरह अपने से दूर कर देता है ........... किस तरह उनकी उपेक्षा की जाती है ................ लोग किस तरह उनसे कटने लगते हैं ........... घृणा करने लगते हैं. लगभग घसीटते हुए उस दिन वह खुद को हॉस्टल तक ला पाया था.उसे आज भी अच्छी तरह याद है, कई दिनों तक अपने कमरे से बाहर नहीं निकला था.हर पल एक ही प्रश्न उसके दिलो -दिमाग में कौंधता रहता ................ अब क्या होगा .....? ............... निराशा के गर्त्त में उसका वजूद कतरा - कतरा डूबता जा रहा था कि अचानक उसका विवेक जाग उठा ................ मरने से पहले क्यों मरना ? जिजीविषा ने उसका दामन थाम लिया ................... जीवन कभी निरर्थक नहीं होता ............... हर जीवन का कोई मकसद होता है ....... . वह मन ही मन बुदबुदा उठा ................. क्या मेरे जीवन का भी कोई मकसद है ? ................. आभास हुआ ,कोई मद्धिम, पर दृढ़ स्वर में कह रहा है ......... निःसंदेह .......... पर वो मकसद है क्या ---- ??????????
Comment
बहुत अच्छी कहानी लिखी आपने !बहुत बहुत बधाई आपको ! किसी भी परिस्थिति में इंसान को हार नहीं माननी चाहिए विकट से विकट स्थिति में भी इंसान को जीने के लिए कोई न कोई मिशन मिल ही जाता है ! :-)
आपकी बात और सन्निहित तथ्य को मैं सादर स्वीकार करता हूँ. यह वस्तुतः एक लेखक की सोच और उसकी सोच को संतुष्ट करते उसके शब्द होते हैं जो किसी कथा को गति देते हैं. प्रस्तुत कहानी के लेखक के अनुसार तथा कहानी के कथ्य के हिसाब से भी ’अनायास’ शब्द उचित है तो एक पाठक को इस ’अनायास’ के ’संदर्भ’ मिल जाने चाहिये थे. चूँकि कहानी ’अनायास’ शब्द से प्रारम्भ होती है और इसका पूर्व संदर्भ उपलब्ध नहीं हो सकता, अतः मैं आपसे ’अचानक’ शब्द हेतु आग्रह कर बैठा था.
कहानी को आगे पढ़ने के क्रम में मुझे एक पाठक के तौर पर यह अहसास हुआ है कि नायक का शहर से गाँव आ जाना पारिस्थिक अधिक है. सो उसका ’अनायास’ ही आना हुआ है.
मैं कहानी की प्रथम को पंक्ति को अब कुछ यों पढ़ रहा हूँ - विकास एक दिन अनायास ही अपने गाँव लौट आया. इसतरह, ’अनायास’ के संदर्भ की आवश्यकता नहीं होती और कहानी पाठक को अगले परिदृश्य के लिये तैयार कर देती है.
वैसे कथ्य और शिल्प के लिहाज से देखा जाय तो कहानी आवश्यक उत्सुकता जगा सकने में पूरी तरह से सफल है. इस हेतु बधाई.
सादर
बहुत ही सशक्त तरीके से आपने इस कहानी के कथ्य को उठाया है सतीशभाईजी.बहुत-बहुत बधाई.
एक बात: आपने इस कहानी का प्रारम्भ ही शब्द ’अनायास’ से किया है. यह अचानक के पर्याय के रूप में आया है क्या? तो फिर इसे कृपया ’अचानक’ ही कर दें. ..
सादर.
बहुत -बहुत शुक्रिया गुरूजी, कोशिश करूँगा की जिस तरह आपको आगाज़ पसंद आया, अंजाम भी पसंद आये
suruaat to bahut achchha hain sir
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