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ग़ज़ल बह्र फेलुन×5+फा


शैतानों की देखो दावत करता है
पापी है पर जन्नत जन्नत करता है ।
*******

कोई तुझे न देखे अच्छी नज़रों से
क्यों तू ऐसी वैसी हरकत करता है ।
*******

क्या होता है हाथों की रेखाओं में
मिहनत कर क्यों क़िस्मत क़िस्मत करता है ।
*******

काली काली बदली जब भी छाये तो
दहक़ाँ फिर बारिश की हसरत करता है ।
********

भेद नहीं है कोई उसकी नज़रों में
फिर क्यों तू औरों से नफ़रत करता है ।
*******

अता किया सबकुछ क़ुदरत ने उसको पर
वो तो हरदम दौलत दौलत करता है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित। ।

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on July 2, 2018 at 1:53pm

बहु-बहुत शुक्रिया आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब । अमूल्य टिप्पणी देकर सफल ग़ज़ल होने की मुहर लगा दी ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 2, 2018 at 12:45pm

अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय आरिफ जी..सादर

Comment by Samar kabeer on July 2, 2018 at 11:10am

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,बह्र-ए-मीर में अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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