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जो भी वतन में दोस्तो दिखते कलाम हैं
हर वक्त उसकी शान में कहते सलाम हैं।१।
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दुत्कार उनको हम रहे केवल सुनो यहाँ
जयचन्दी नीयतों में जो रहते इमाम हैं।२।
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उनका भी मान है नहीं केवल लताड़ है
रखके जो नाम राम का रावण से काम हैं।३।
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नेता सभी हैं एक से जो फूट चाहते
समझेंगे क्या कभी इसे जो लोग आम हैं।४।
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भाई भरत सा बनके ढब रहना कुबूल है
आगे तो आइए सभी जितने भी राम हैं।५।
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नेता हुए हैं अब तलक जितने भी देश में
ये मान बैठे हैं हमें इन के गुलाम हैं।६।
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मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी'मुसाफिर'
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*इमाम - अगुआ/नेतृत्वकर्ता
Comment
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफिर'जी। बेहतरीन गज़ल।
नेता हुए हैं अब तलक जितने भी देश में
ये मान बैठे हैं हमें इन के गुलाम हैं।६
आदरणीय लक्ष्मण भाई, आदाब। बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने, हार्दिक बधाई क़ुबूल करें।
आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।
नमस्ते, मित्र लक्ष्मण जी, गज़ल अच्छी कही। बधाई।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
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