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रखकर जो नाम राम का -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२

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जो भी वतन में दोस्तो दिखते कलाम हैं
हर वक्त उसकी शान में कहते सलाम हैं।१।

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दुत्कार उनको हम रहे केवल सुनो यहाँ
जयचन्दी नीयतों में  जो  रहते इमाम हैं।२।

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उनका भी मान है  नहीं  केवल लताड़ है
रखके जो नाम राम का रावण से काम हैं।३।

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नेता  सभी  हैं  एक  से  जो  फूट चाहते
समझेंगे क्या कभी इसे जो लोग आम हैं।४।

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भाई भरत सा बनके ढब रहना कुबूल है
आगे तो आइए सभी जितने भी राम हैं।५।

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नेता हुए हैं अब तलक जितने भी देश में
ये  मान  बैठे  हैं  हमें  इन  के  गुलाम हैं।६।

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मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी'मुसाफिर'

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*इमाम - अगुआ/नेतृत्वकर्ता

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2020 at 11:06am

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2020 at 11:05am

आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।

Comment by TEJ VEER SINGH on February 15, 2020 at 12:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफिर'जी। बेहतरीन गज़ल।

नेता हुए हैं अब तलक जितने भी देश में
ये  मान  बैठे  हैं  हमें  इन  के  गुलाम हैं।६

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on February 14, 2020 at 4:33pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई, आदाब। बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने, हार्दिक बधाई क़ुबूल करें।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 11, 2020 at 12:03pm

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on February 9, 2020 at 4:15pm

नमस्ते, मित्र लक्ष्मण जी, गज़ल अच्छी कही। बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2020 at 6:39pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।

Comment by Samar kabeer on February 8, 2020 at 3:18pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

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