For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( नया ज़माना कभी न आया..)

(121 22 121 22 121 22  121 22)

नया ज़माना कभी न आया , पुरानी दुनिया बदल रही है
ज़मीन पैरों तले थी कल तक ,न जाने कैसे फिसल रही है

बुझा न पायेंगी आंधियाँ भी ,हवाओं से जिस की दोस्ती है
अभी तो शम्अ जवां हुई है ,अभी धड़ल्ले से जल रही है

किसी के अरमां मचल रहे हैं , हुई किसी की मुराद पूरी
यहाँ उठी है किसी की डोली, वहाँ से अरथी निकल रही है

निकल रहा है किसी का सूरज,अभी हुई दोपहर किसी की
हमारे दिन तो गुज़र चुके हैं , हमारी अब शाम ढल रही है

बुझाने वाले बहुत हैं लेकिन, जलाने वाले नहीं मिलेंगे
करो हिफ़ाज़त दिये की अपने,हवा भीअब तेज़ चल रही है

इन्होंने ही कल बनाई सड़कें , जिन्होंने मोटर भी है बनाई
जो लारियों से हैं बच के आए ,उन्हें ही सड़कें कुचल रही हैं!

सुकून मिलता है देख मुझको ,जवां दिलों के ये ख़ूं की गर्मी
जमी है सर्दी हमारे सीने , में धीरे - धीरे पिघल रही है

*मौलिक व अप्रकाशित

Views: 466

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on May 8, 2020 at 11:24am

आद0 सालिक गणवीर जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। आद0 समर साहब की इस्लाह भी अति उत्तम। बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by Samar kabeer on May 7, 2020 at 9:27pm


/ महोदय मेरे मन मेंं एक शंका यह उठती है कि है कि दीया का अर्थ दीपक है और दिया का अर्थ तो दीपक नहीं.//

'दिया' का अर्थ भी दीपक ही है,आपने'मीर' का मशहूर शैर नहीं सुना:-

'दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है

चले आओ जहाँ तक रौशनी मालूम होती है'

Comment by सालिक गणवीर on May 7, 2020 at 4:10pm
जनाब समर कबीर साहब
आदाब
हौसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ. आपकी सलाह पर अमल किया है. महोदय मेरे मन मेंं एक शंका यह उठती है कि है कि दीया का अर्थ दीपक है और दिया का अर्थ तो दीपक नहीं. आदरणीय उचित सलाह देकर शंका समाधान कर मुझ पर कृपा करें.
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2020 at 11:51am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 6, 2020 at 8:26pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'अभी तो शम्आ जवां हुई है ,अभी धड़ल्ले से जल रही है'

इस मिसरे में 'शम'अ' का वज़्न आपने 22 लिया है,जो ग़लत है, इसका वज़्न 21 होता है,देखियेगा ।

'करो हिफ़ाज़त दीये की अपने,हवा भीअब तेज़ चल रही है'

इस मिसरे में 'दीये' को "दिये" कर लें,मिसरा बेबह्र हो रहा है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service