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तिजारत कैसे की जाए हुआ है फैसला जब से
बड़ी किल्लत है पानी की लहू सस्ता हुआ जब से
मशीनें अब यहाँ पर और महंगी क्यों नहीं होंगी?
वतन में मुफ़्त ही इंसान भी मिलने लगा जब से
हमारा शह्र छोटा था मगर मिलता नहीं था वो
हमें अक्सर बुलाता है नयी दिल्ली गयाा जब से
समय के साथ कम होगी यही हम सोच बैठे थे
ये दूरी कम नहीं होती मिटा है फासला जब से
नयी शक्लें दिखाता था कभी जब सामने आया
नहीं जाता है कमरे में रखा है आइना जब से
सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देता
बहुत वीरान है रस्ता चला है क़ाफ़िला जब से
बयां करना भी मुश्किल है अभी हालात ऐसे हैं
मैं सांसें ले नहीं सकता हुई ताज़ा हवा जब से
* मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
'सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देते
नहीं चलता है पटरी पर हुआ है हादसा जब से'
जी,मुझे मालूम है आप किस हादिसे का ज़िक्र कर रहे हैं,मैं सिर्फ़ ये अर्ज़ कर रहा हूँ कि आप जो कहना चाहते हैं,वो शिल्प कमज़ोर होने के कारण स्पष्ट नहीं हो रहा है,ग़ौर फ़रमाएँ ।
आदरणीय समर कबीर साहब
आपकी इस्लाह ,सर आंखों पर.
इस शे'र पर अपनी बात कहने का दुस्साहस कर रहा हूँ. संदर्भ है रेल की पटरी पर सोलह मजदूरों का कट कर मर जाना. घर वापस आ रहे मजदूरों को सड़क पर पुलिस चलने नहीं दे रही है और जब ये रेल की पटरियों पर चलते हैं तो कट कर मर जाते हैं. इसलिए मैंने मिसरा ए सानी मेंं लिखा
नहीं चलता है पटरी पर हुआ है हादसा जब से
इस दुर्घटना के बाद लोग पटरियों पर चलने से डरेंगे. ख़ुदा जाने इनका क्या होगा?
//सड़क वाले शैर पर ऊला में देते की बजाय देता लिखने से शुतुरगुरबा दोष खत्म हो जाएगा या नहीं?//
'देता' करने से दोष तो निकल जायेगा,लेकिन शैर का भाव स्पष्ट करने के लिए सानी मिसरा बदलने का प्रयास करें ।
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'हमारा शह्र छोटा था तो अक्सर भेंट होती थी
नयी दिल्ली में होगा वो हुआ है लापता जब से'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,सानी बदलने का प्रयास करें ।
'सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देते
नहीं चलता है पटरी पर हुआ है हादसा जब से'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ,और ऊला में शुतरगुरबा दोष भी है,'उसने' एक वचन और 'देते' बहुवचन,देखियेगा ।
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