For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( तिजारत कैसे की जाए.....)

1222 1222 1222 1222

तिजारत कैसे की जाए हुआ है फैसला जब से
बड़ी किल्लत है पानी की लहू सस्ता हुआ जब से

मशीनें अब यहाँ पर और महंगी क्यों नहीं होंगी?
वतन में मुफ़्त ही इंसान भी मिलने लगा जब से

हमारा शह्र छोटा था मगर मिलता नहीं था वो
हमें अक्सर बुलाता है नयी दिल्ली गयाा जब से

समय के साथ कम होगी यही हम सोच बैठे थे
ये दूरी कम नहीं होती मिटा है फासला जब से

नयी शक्लें दिखाता था कभी जब सामने आया
नहीं जाता है कमरे में रखा है आइना जब से

सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देता

बहुत वीरान है रस्ता चला है क़ाफ़िला जब से

बयां करना भी मुश्किल है अभी हालात ऐसे हैं
मैं सांसें ले नहीं सकता हुई ताज़ा हवा जब से

* मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1066

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on May 11, 2020 at 9:23am
आदरणीय समर कबीर साहब
1.हमारा शह्र छोटा था तो अक्सर भेंट होती थी
कभी तो लौट कर आता नयी दिल्ली गया जब से
2.सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देता
बहुत वीरान है रस्ता चला है क़ाफ़िला जब से
सर मिसरा ए सानी बदल दिया है. आप नज़रे इनायत की ज़रूरत है.
Comment by सालिक गणवीर on May 11, 2020 at 8:50am
आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
शिल्प कमजोर है, अब मुझे भी यक़ीन आ गया.मैं अश'आर का सानी ही बदलने का प्रयास करता हूँ. और फिर आपको परेशान करूँगा. अब मैं सोचता हूँ ओबीओ की सदस्यता ग्रहण करने में देर क्यों लगा दी!!
Comment by Samar kabeer on May 10, 2020 at 9:17pm

'सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देते
नहीं चलता है पटरी पर हुआ है हादसा जब से'

जी,मुझे मालूम है आप किस हादिसे का ज़िक्र कर रहे हैं,मैं सिर्फ़ ये अर्ज़ कर रहा हूँ कि आप जो कहना चाहते हैं,वो शिल्प कमज़ोर होने के कारण स्पष्ट नहीं हो रहा है,ग़ौर फ़रमाएँ ।

Comment by सालिक गणवीर on May 10, 2020 at 4:33pm

आदरणीय समर कबीर साहब

आपकी इस्लाह ,सर आंखों पर.

इस शे'र पर अपनी बात कहने का दुस्साहस कर रहा हूँ. संदर्भ है रेल की पटरी पर सोलह मजदूरों का कट कर मर जाना. घर वापस आ रहे मजदूरों को सड़क पर पुलिस चलने नहीं दे रही है और जब ये रेल की पटरियों पर चलते हैं तो कट कर मर जाते हैं. इसलिए मैंने मिसरा ए सानी मेंं लिखा

नहीं चलता है पटरी पर हुआ है हादसा जब से

इस दुर्घटना के बाद लोग पटरियों पर चलने से डरेंगे. ख़ुदा जाने इनका क्या होगा?

Comment by Samar kabeer on May 10, 2020 at 4:05pm


 //सड़क वाले शैर पर ऊला में देते की बजाय देता लिखने से शुतुरगुरबा दोष खत्म हो जाएगा या नहीं?//

'देता' करने से दोष तो निकल जायेगा,लेकिन शैर का भाव स्पष्ट करने के लिए सानी मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

Comment by सालिक गणवीर on May 10, 2020 at 3:08pm
आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
आपकी क़ीमती सलाह और हौसला अफजाई के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ, सड़क वाले शैर पर ऊला में देते की बजाय देता लिखने से शुतुरगुरबा दोष खत्म हो जाएगा या नहीं?कृपया बताने का कष्ट करें.
Comment by Samar kabeer on May 10, 2020 at 12:55pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'हमारा शह्र छोटा था तो अक्सर भेंट होती थी
नयी दिल्ली में होगा वो हुआ है लापता जब से'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,सानी बदलने का प्रयास करें ।

'सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देते
नहीं चलता है पटरी पर हुआ है हादसा जब से'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ,और ऊला में शुतरगुरबा दोष भी है,'उसने' एक वचन और 'देते' बहुवचन,देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service