For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( हम सुनाते दास्ताँ फिर ज़िन्दगी की....)

( 2122 2122 2122 )

हम सुनाते दास्ताँ फिर ज़िन्दगी की
काश हम भी काटते फसलें ख़ुशी की

अब चुरा लो शम्स की भी धूप सारी

कोई तो बदलो  ये सूरत तीरगी की

जानवर अब हैं ज़ियादा जंगलों में
नस्ल घटती जा रही है आदमी की

हैं अंधेरे घर में अपने क़ैद सारे
कौन खींचेगा लकीरें रौशनी की

जो भी हो सागर मिलेगा तिश्नगी को
बाढ़ ले जाये हमें अब तो नदी की

आंखेंं फट जाएँगी हैरत से तुम्हारी
हद अभी देखी नहीं दीवानगी की

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 704

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नादिर ख़ान on May 21, 2020 at 11:45pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी अच्छी गज़ल कही आपने, हमेशा की तरह समर साहब ने खूब इस्लाह की ... बधाई 

Comment by सालिक गणवीर on May 20, 2020 at 6:06pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह'कुशक्षत्रप'जी
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती एवं सराहना के लिए हार्दिक आभार.
Comment by नाथ सोनांचली on May 20, 2020 at 4:05pm

आद0 सालिक गणवीर जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकारिये। यह शेर खास पसन्द आया

जानवर अब हैं ज़ियादा जंगलों में
नस्ल घटती जा रही है आदमी की

Comment by सालिक गणवीर on May 19, 2020 at 10:58am

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

सादर प्रणाम

सराहना के लिए हृदय से आभार.

Comment by सालिक गणवीर on May 19, 2020 at 10:54am

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी

सादर प्रणाम

सराहना के लिए आपका हृदय से आभारी हूँँ.

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 18, 2020 at 9:54pm

खूबसूरत ग़ज़ल ,बधाई स्वीकारें साहेब 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2020 at 12:23pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by सालिक गणवीर on May 16, 2020 at 5:08pm
आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
आपकी क़ीमती सलाह और मार्ग दर्शन के लिए तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ. ज़रुरी बदलाव के साथ ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ.
Comment by Samar kabeer on May 16, 2020 at 12:07pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'धूप थोड़ी सी चुराओ शम्स की भी
अब तो बदलो कोई सूरत तीरगी की'

इस शैर में कसावट नहीं है,ऊला और चुस्त करने की कोशिश करें ।

'जानवर जंगल में ज़्यादा हो गए हैं'

आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि उर्दू के लिहाज़ से सहीह शब्द "ज़ियादा" 122 है,और ग़ज़लों में इसी वज़्न को लेना उचित होता है,जैसे:-

'चलके तेरी आँखों से शराब और ज़ियादा'

'हैं अंधेरे घर में अपने क़ैद अब भी'

इस मिसरे में 'अब भी' की जगह "सारे" या "सब ही" शब्द उचित होगा ।

'आंख बाहर आ गई हैरत से कल भी
हद अभी देखी नहीं दीवानगी की'

सानी में जब ' देखी नहीं' तो ऊला में 'आ गई' शब्द कैसे ले सकते हैं,ऊला इस तरह का होना चाहिए:-

'आँखें फट जाएँगी हैरत से तुम्हारी'

Comment by सालिक गणवीर on May 15, 2020 at 7:47pm
आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
अपनी नयी ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ. वक़्त मिलने से एक पढ़ लें तो इनायत होगी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service