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दिखती भला है अब किधर उम्मीद की चमक
खोने लगी है खुद सहर उम्मीद की चमक।१।
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माझी को धोखा दे गयी पतवार हर कोई
दरिया में जैसे हो लहर उम्मीद की चमक।२।
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बाँटेगा सबको आ के सच थोड़ी मिले भले
लेकर चला है वो अगर उम्मीद की चमक।३।
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कहते उसे किसान हैं निर्धन बहुत भले
झुकने न देगी उसका सर उम्मीद की चमक।४।
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लूटा गया है हर तरह उसको जहान में
आँखों में उसके है मगर उम्मीद की चमक।५।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. अमिता जी, सादर आभार ।
कहते उसे किसान हैं निर्धन बहुत भले
झुकने न देगी उसका सर उम्मीद की चमक
बहुत सही ,सच्ची सुंदर रचना मुसाफिर जी बधाई
आ. भाई सुरेंन्द्र जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आद0 लक्ष्मण जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।
लूटा गया है हर तरह उसको जहान में
आँखों में उसके है मगर उम्मीद की चमक।५।
आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
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