For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( नहीं था इतना भी सस्ता कभी मैं....)

(1222 1222 122)

नहीं था इतना भी सस्ता कभी मैं
बशर हूँ ,था बहुत मंहगा कभी मैं

अभी जिसने रखा है घर से बाहर
उसी के दिल में रहता था कभी मैं

जिसे कहते हो तुम भी झोपड़ी अब
मिरा घर है वहीं पर था कभी मैं

वहाँ पर क़ैद कर रक्खा है उसने
जहाँ देता रहा पहरा कभी मैं

सड़क पर क़ाफिला है साथ मेरे
नहीं इतना रहा तन्हा कभी मैं

मुझे भी तुम अगर तिनका बनाते
हवा के साथ उड़ जाता कभी मैं

बनाया है मुझे सागर उसीने
हुआ करता था इक सहरा कभी मैं

मैं जैसा हूँ सदा वैसा रहूँगा
न बन पाया तिरे जैसा कभी मैं

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 532

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on May 26, 2020 at 1:06pm
आदरणीय अमीरुद्दीन ख़ान साहब
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.
Comment by सालिक गणवीर on May 26, 2020 at 1:05pm
आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.
जनाब क्या सस्ते और मंहगे में कोई रब्त नहीं?फ़िर भी आपकी इस्लाह पर मतला बदलने की कोशिश करता हूँ.
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 25, 2020 at 7:56pm

जनाब भाई सालिक गणवीर जी, आदाब। वाह क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है। दिल में उतरने और इन्सानी जज़्बात बयां करने वााली रचना के लिये तहे-दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by Samar kabeer on May 25, 2020 at 7:55pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

मतले के दोनों मिसरे अलग अलग हैं उनमें रब्त पैदा नहीं हो सका, देखियेगा ।

Comment by सालिक गणवीर on May 25, 2020 at 4:41pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.

Comment by सालिक गणवीर on May 25, 2020 at 4:40pm

आदरणीय भाई डा.छोटे लाल सिंह जी.
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 25, 2020 at 8:53am

आदरणीय सालिक गणवीर साहब कमाल की गजल प्रस्तुत की आपने,न बन पाया तेरे जैसा कभी मैं ,बहुत सुंदर मन मगन हो गया बधाई कुबूल कीजिए

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 24, 2020 at 4:40pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
15 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service