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अगर है जीना तो फ़िक्रों के कारवाँ से निकल(१११ )

ग़ज़ल(1212 1122 1212 22 /112 )

अगर है जीना तो फ़िक्रों के कारवाँ से निकल

हिसार का जो बनाया उस आसमाँ से निकल

कहा ख़ुशी ने कि हूँ इंतज़ार में कब से

है मेरी बारी अरे ग़म तू इस मकाँ से निकल

अमीर है तो क़ज़ा क्या न आएगी तुझको

फ़ना न होगा तू ऐसे बशर गुमाँ से निकल

ख़ुदा ग़रीब की ख़ातिर तू अश्क बन जा मेरे

दुआ का रूप ले मेरी सदा ज़बाँ से निकल

बिना पसीना बहाये नसीब बनता नहीं

नुज़ूमी और लकीरों के साएबाँ से निकल

हयात लेती है जो भी वो इम्तिहाँ दे दे

तू कामयाब सदा हो के इम्तिहाँ से निकल

न बन कभी तू कोई उलझनों का सैयारा

अगर बना है तो जल्दी से कहकशाँ से निकल

अगर तिजारतों का शौक है तो तय कर ले

तू सब से पहले तो फ़िक्र-ए-नफ़ा-ज़ियाँ से निकल

जहाँ पे आबरू नीलाम हर घड़ी होती

'तुरंत ' देर न कर तू अभी वहाँ से निकल

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 19, 2020 at 5:54pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब , आदाब , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | 

Comment by Samar kabeer on June 19, 2020 at 4:08pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

 

'तू सब से पहले तो फ़िक्र-ए-नफ़ा-ज़ियाँ से निकल'

इस मिसरे में सहीह शब्द "नफ़'अ'' 21 है, देखियेगा ।

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