For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वफ़ा के देवता को बेवफ़ा हम कैसे होने दें(११३ )

ग़ज़ल ( 1222 1222 1222 1222 )

.

वफ़ा के देवता को बेवफ़ा हम कैसे होने दें

बताओ ग़ैर का तुमको ख़ुदा हम कैसे होने दें

नहीं क़ानून की दफ़्आत में कुछ ज़िक्र उलफ़त का

मुहब्बत में क़ज़ा की हो सज़ा हम कैसे होने दें

बिठा कर तख़्त पर हमने रखा है ताज तेरे सर

हमीं पर ज़ुल्म की बारिश बता हम कैसे होने दें

किसी को आसरा गर दे नहीं सकते ज़माने में

किसी को जानकर बे-आसरा हम कैसे होने दें

नतीज़ा ख़ूब भुगता है मरासिम में मसाफ़त का

दिलों के दरमियाँ फिर फ़ासला हम कैसे होने दें

ख़ताएँ की सज़ा भुगती सबक़ से दूरियाँ फिर भी

ख़ताएँ फिर  वही हर मर्तबा हम कैसे होने दें

ज़रूरत जो हुई ज़र की कभी ईमान भी डोला

मगर किरदार से इज़्ज़त जुदा हम कैसे होने दें

ग़मों की मेज़बानी  में कटी है उम्र ये सारी

ख़ुशी इसके लिए तुमको ख़फ़ा हम कैसे होने दें

सफ़ीना जब भी सौंपा है डुबाया है 'तुरंत' उसने

उसे फिर ज़िंदगी का नाख़ुदा हम कैसे होने दें

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 3, 2020 at 8:53pm

भाई Rupam kumar -'मीत'  जी , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए दिली शुक्रिया | 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 1, 2020 at 7:25pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी , रचना की सराहना के लिए सादर आभार एवं नमन | 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2020 at 5:27pm

आ. भाई गिरधारी सिंह गहलौत जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 28, 2020 at 4:01pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी साहिब, इस शानदार ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें।

/गुनाहों की दफ़ाओं में नहीं है ज़िक्र उल्फ़त का

मुहब्बत में क़ज़ा की हो सज़ा हम कैसे होने दें/

हुज़ूर, दूसरे शेर में आपने जो 'दफ़ाओं' को 122 के वज़्न पर लिया है, उस पर संशय है, क्यूँकि 'दफ़्अ:' का सहीह वज़्न 21 होता है, और इसका बहुवचन 'दफ़्आत' होता है। अगर आपको मुनासिब लगे तो इस मिस्रे को यूँ कह सकते हैं:
1222  /  1222  /  1222  /  1222
नहीं क़ानून की दफ़्आत में कुछ ज़िक्र उलफ़त का

/बिठाया तख़्त पर हमने रखा है ताज तेरे सर
हमीं पर ज़ुल्म की बारिश बता हम कैसे होने दें/
आदरणीय, इस शेर में 'बिठाया' के स्थान पर 'बिठा कर' कह कर देखिएगा।

/ख़ताएँ की सज़ा भुगती सबक़ से दूरियाँ फिर भी
ख़ताएँ बारहा हर मर्तबा हम कैसे होने दें/
जी, इस शेर में ऊला का भाव और स्पष्ट किया जा सकता है। और सानी में जब 'हर मर्तबा' कह दिया तो 'बारहा' अनावश्यक लग रहा है। अगर उचित समझें तो सानी यूँ कह सकते हैं:
1222  /  1222  /  1222  /  1222
ख़ताएँ सब वही हर मर्तबा हम कैसे होने दें

/ग़मों की मेजबानी में कटी है उम्र ये सारी
ख़ुशी इसके लिए तुमको ख़फ़ा हम कैसे होने दें/
आदरणीय, 'मेज़बानी' में नुक़्ता लगा लीजिये।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 28, 2020 at 3:38pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब  , आदाब , 

आपका अनमोल आशीर्वाद पा कर मेरा लिखना सार्थक हो गया. आदर सहित कोटिशः धन्यवाद आपको

Comment by Samar kabeer on June 28, 2020 at 11:19am

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service