1222 1222 122
सफलता के शिखर पर वे खड़े हैं
सदा कठिनाइयों से जो लड़े हैं
बताओ नाम तो उन पर्वतों के
हमारे हौसलों से जो बड़े हैं
नहीं हैं नैन ये गर सच कहूँ तो
सुघर चंदा में दो हीरे जड़े हैं
जो प्यासी आत्मा को तृप्त कर दें
नहीं हैं होंठ, वे मधु के घड़े हैं
ये सच है कर्मशीलों के लिए तो
सितारे भूमि पर बिखरे पड़े हैं
ये दिल के घाव अब तक हैं हरे क्यों
यकीनन शूल शब्दों के गड़े हैं
उन्हीं ने आँधियों के रुख हैं मोड़े
'बली' जो सामने इनके अड़े हैं
रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. भाई रामबली जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय रामबली गुप्ता साहिब, इस सुंदर रचना पर बधाई स्वीकार करें। बस इस मिस्रे में मधु 11 खटक रहा है:
/नहीं हैं होंठ, वे मधु के घड़े हैं/
अगर मुनासिब लगे तो इसे यूँ कह सकते हैं:
1222 1222 122
नहीं हैं लब मधु के वे घड़े हैं
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