For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अनेक वीर नारियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था| इस प्रथम स्वाधीनता संग्राम में देश के सभी वर्गों ने अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार उसमे योगदान देने में अपना पूरा सहयोग दिया| इस संग्राम में भाग लेने वाली नारियों ने अपने धर्म जाति की परवाह किए बिना अपने त्याग और बलिदान की एक अनोखी मिशाल पेश की और आने वाली पीढ़ियो के लिए मार्गदर्शक बनी| प्रथम भारतीय विद्रोह की सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात यह है कि इसमें केवल शाही राजघरानो या कुलीन पृष्ठभूमि वाली नारियों ने ही भाग नहीं लिया था बल्कि इसमें हर धर्म-समुदायों की नारियों ने बराबर का सहयोग देकर अपने भागीदारी को बखूबी निभाते हुए अपने प्राणों को स्वतंत्रता की खातिर न्यौछावर कर दिया| इन वीर नारियों ने जग को यह संदेश दिया कि यदि नारी को मौका दिया जाए तो वह किसी भी स्थिति में पुरुष से पीछे नहीं है| ऐसी ही नारियों में एक ऊदादेवी का नाम भी बड़ी ही शृद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है| जिन्होने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपनी जाति और धर्म से उठकर अपने कर्तव्य को निभाया और स्वतंत्रता प्राप्ति में अपना योगदान देते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई| भारत में यूरोपियों का आगमन व्यापारियों के रूप में हुआ किंतु दो शताब्दियों के भीतर यूरोपियों में से अंग्रेज सशक्त होकर उभरे| विभिन्न रूढ़ियों में बंधा तथा वर्ण व्यवस्था में बिखरा होने के कारण भारतीय समाज अंग्रेजों का सामना नहीं कर पाया और हिंदुस्तान में पूर्व समय से चली आ रही दासता फिर से एक नए रूप में प्रारम्भ हो गई| अगर देखा जाये तो अंग्रेजों के शासन को स्थापित करने में भारत के इतिहास में सन् 1764 सबसे अधिक निर्णायक वर्ष रहा जिसमें अंग्रेजों ने बंगाल में नवाब मीर कासिम, अवध में नवाब शुजाउद्दौला और मुगल बादशाह शाह आलम की संयुक्त सेना को परास्त कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी थी| इस युद्द के बाद अधिकतर रियासतें अंग्रेजों की परोक्ष सत्ता के अधीन आनी शुरू हो गई और अंग्रेजों ने देश को निचोड़ना शुरू कर दिया |

 

              यह हमारी विडम्बना ही है कि ऊदा देवी के जन्म के बार में इतिहास के पन्नों पर हमें अधिक जानकारी प्राप्त नहीं होती लेकिन कहा जाता है कि उनका जन्म लखनऊ के एक ग्राम में पासी जाति में हुआ था| ऊदादेवी बचपन से ही निर्भीक स्वभाव इन्हें की थीं| वह बिना किसी झिझक के घने जंगलों में अपनी टोली के साथ खेलने चली जाती थीं| बचपन से ही उसे बहादुरी और चुनौती से भरे खेल खेलना बहुत पसंद था जैसे पेड़ पर चढ़ना, छुपना और घर लौटते समय जंगल से फल और लकड़ियां एकत्रित करके लाना| जैसे-जैसे ऊदा देवी बड़ी होती गई, वैसे-वैसे उनके हम उम्रों का नेतृत्व करने के गुणों में बढ़ोत्तरी होती गई| सही-गलत का सोच-विचार करके ही वह किसी निर्णय पर पहुँचती थी और सही बात कहने में पलभर की भी देर नहीं करती थी फिर चाहे उसके सामने कोई भी क्यों ना हों| अपनी टोली की रक्षा के लिए तो वह खुद की भी परवाह नहीं करती थी, उसके लिए वह बड़े से बड़े परिणाम से भी नहीं डरती थी| वीरता भरे इसी तरह के खेल-खेल में ही उसनें तीर चलाना, बिजली की तेजी से भागना अब ऊदा देवी के लिए सामान्य सी बात हो गई थी, उनकी निडरता और निर्भीकता अतुलनीय थी| किशोरावस्था में प्रवेश करते-करते ऊदादेवी में गहरी गम्भीरता का समावेश होने लगा अब अपने सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों को समझनें की कोशिश करने लगी थी| ऊदादेवी के हृदय में देश भक्ति का अंकुर फूट चुका था, उस समय के सामाजिक व राजनैतिक परिवेश की वजह से उनका पढ़ना-लिखना कठिन नहीं बल्कि बहुत असामान्य बात थी| उस समय समाज में उपस्थित विपरीत परिस्थितियों के कारण ऊदा देवी को भी शिक्षा से दूर रहना पड़ा| जीवन में कठिनाइयों से जूझनेवाली ऊदा देवी ने वक़्त पर सही व शीघ्र निर्णय लेने वाली, साहसी, दृढ़ निश्चयी और कठोर हृदय वाला बना दिया था| आगे चलकर यही गुण ऊदाको इतिहास में उच्च स्थान दिलाने वाला था| अवध की सेना में एक टुकड़ी पासी सैनिकों की भी थी| इस पासी टुकड़ी में बहादुर युवक मक्का पासी भी था उसी से ऊदादेवी का विवाह हुआ था| शादी के बाद ससुराल में ऊदा का नाम जगरानी रख दिया गया और इसी नाम से उनको जाना भी गया| ऊदादेवी के पति मक्का पासी व्यावहारिक रूप से बहुत ही साहसी व पराक्रमी थे। 

 

सन् 1857 में भारतीयों ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता का बिगुल बजा दिया | इस समय अवध की राजधानी लखनऊ थी और वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल और उनके अल्पवयस्क पुत्र बिरजिस कदर ने अवध के नवाब बनें| नवाब बनते ही वाजिद अली शाह ने बड़ी मात्रा में अपनी सेना में सैनिकों की भर्ती की प्रक्रिया चलाई जिसमें हर समुदायों के लोगों से बेगम हजरत महल ने उनका पूरा-पूरा सहयोग मांगा | देश की आजादी की लड़ाई के लिए चलाई गई इस भर्ती प्रक्रिया में सभी धर्मो के लोगों को नौकरी पाने का मौका मिला जिसमें लखनऊ के निम्न वर्गों के लोगों ने हाथो-हाथ लिया और लोग बढ़-चढ़कर सेना भर्ती में शामिल होने लगे। मक्का पासी ने भी इस अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया और अवसर का लाभ उठाते हुए वे भी इनकी सेना में भर्ती हो गए भारत की स्वतन्त्रता क्रांति के दौरान उन्होंने बेगम हज़रत महल की मदद की और अपनी साथ की सभी महिला लड़ाकों का एक अलग सेना संगठन बनाया। हजरत महल की इस सेना दल में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के दुर्गा दल की तरह से ही ज्यादातर महिलायें थीं जो अपनी बहादुरी के लिए जानी जाती थी। इन सभी को वीरांगनाओं की मुक्ति सेना के रूप में जाना जाता है। मक्का पासी को देश की आजादी के लिए नवाब के दस्ते में शामिल होते देखकर ही ऊदा देवी को भी सेना में भर्ती होने की प्रेरणा मिली| ऊदादेवी की जिद्द और उत्साह देखकर मक्का पासी ने ऊदादेवी को भी सेना में शामिल होने की इजाजत दे दी| वह वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में भर्ती हो गईं और अपनी लग्न और बहादुरी के बल पर उसने अपनी महिला दस्ते में अच्छी पहचान बना ली| शीघ्र ही ऊदादेवी ने अपनी टुकड़ी में नेतृत्वकर्ता के रुप में उभरने लगी और उन्हें मुक्ति सेना की टुकड़ी का सेनापति बना दिया गया| धीरे धीरे अपनी वीरता और बहादुरी के बल पर वह बेगम हज़रत महल की अच्छी मित्र बन गई अब बेगम की हर सैनिक कार्यवाहियों में उसका जिक्र होता था |

 

10 मई 1857 मेरठ के सिपाहियों द्वारा छेड़ा गया संघर्ष शीघ्र ही उत्तर भारत में फैलने लगा एक महीने के भीतर ही लखनऊ ने भी अंग्रजों को चुनौती दे दी| मेरठ, दिल्ली, लखनऊ, कानुपर आदि क्षेत्रों में अंग्रेजों के पैर उखड़ने लगे बेगम हजरत महल के नेतृत्व में अवध की सेना भी अंग्रेजों पर भारी पड़ी किंतु एकता के अभाव व संसाधनों की कमी के कारण लम्बे समय तक अंग्रेजों का मुकाबला करना मुमकिन नहीं हुआ| इस कारण धीरे-धीरे अंग्रेजों ने लखनऊ पर नियंत्रण पाने के प्रयास शुरू कर दिए| 10 जून 1857 ई. को हेनरी लॉरेंस ने लखनऊ पर पुनः कब्जा करने का प्रयास किया| चिनहट के युद्ध में अँग्रेजी सेना से युद्ध करते हुए मक्का पासी को वीरगति की प्राप्ति हुई| यह ऊदादेवी पर वज्रपात था किंतु ऊदादेवी ने धैर्य नहीं खोया और अपनी दृढ़ता और वीरता का परिचय देते हुए वह अपनी टुकड़ी के साथ संघर्ष करने के लिए आगे बढ़ती रही| नवंबर तक आते-आते यह तय हो गया था कि अंग्रेजी सेना अब लखनऊ पर कब्जा कर ही लेंगे क्योंकि क्रांतिकारियों की सेना में लगातार कमी आती जा रही थी| वही अंग्रेज़ अधिकारियों ने लखनऊ के विद्रोह को दबाने के लिए और सेना भेज दी गई, नई सैनिक टुकड़ी मिलने से अंग्रेज़ सैनिक बहुत बहादुरी से लड़ने लगे| अब विद्रोहियों के लिए यह युद्ध केवल अपना मान- सम्मान और अपनी जान बचाने तक ही सीमित रह गया था इसलिए भारतीय सैनिक अपनी सुरक्षा के लिए लखनऊ के सिकंदराबाग में छुप गए|

 

16 नवम्बर 1857 को सार्जेंट काल्विन कैम्बेल की अगुवाई में अंग्रेज़सेना ने लखनऊ के सिकंदर बाग में ठहरे हुए भारतीय सैनिकों पर हमला बोल दिया परंतु ऊदादेवी बिना लड़े हार मानने को तैयार नहीं हुई और साहस व वीरता का परिचय देते हुए आगे बढ़ती रही | ऊदादेवी ने पुरुषों की वेश-भूषा धारण कर अपनी सेना दल के साथ अंग्रेजी सेना को सिकन्दरबाग के द्वार पर ही रोक दिया। अँग्रेजी सैनिकों की आँखों में धूल झोंकते हुए वह लड़ाई के दौरान अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला-बारूद लेकर एक पीपल के पेड़ पर चढ़ गयी| पेड़ पर से लगातार हमला कर उसने अंग्रेज़ सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया, जब तक कि उनका गोला बारूद समाप्त नहीं हो गया। उन्होंने दो दर्जन से भी अधिक अंग्रेज़ सैनिकों को मार गिराया। इसे देख अंग्रेजी अधिकारी क्रोध से भर गये उन्हें समझ नहीं आया कि उनके सैनिकों को कौन मार रहा था। तभी एक अंग्रेज सैनिक की निगाह पीपल के पेड़ पर गई उन्होनें देखा पीपल के पेड़ के पत्तों के झुरमुट में छिपा एक बाग़ी ताबड़तोड़ गोली बरसा रहा था। अंत में कैम्पबेल ने उस पेड़ बैठे काले वस्त्र में एक मानव आकृति पर निशाना साधने का आदेश अपने सैनिकों को दिया उसका आदेश मिलते ही अंग्रेज़ सैनिकों ने पेड़ पर बैठे बागी पर गोली बरसानी शुरू कर दी और जब तक गोलियां चलाते रहे जब तक कि हमलावर पेड़ से नीचे नहीं गिर गया। जब तक ऊदादेवी के पास गोला बारूद था तब उसने भी अंग्रेज़ सैनिकों को गोला बारूद से अच्छा जवाब दिया तभी एक गोली ऊदा देवी को लगी और वह गोली लगते ही पेड़ से नीचे गिर पड़ीं। उसके बाद जब अँग्रेज़ो अधिकारियों ने सिकंदर बाग़ में प्रवेश किया तो उन्हें पता चला कि पुरुष की वेश-भूषा में वह भारतीय बागी सैनिक कोई और नहीं बल्कि एक महिला थी। जिसकी पहचान बाद में ऊदा देवी के तौर पर की गयी | ऊदा देवी की वीरता से अभिभूत हो गया उसकी आंखे नम हो गई, तब काल्विन कैम्बेल ने हैट उतारकर शहीद ऊदा देवी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि यदि मुझे पता होता कि यह महिला है तो मैं कभी गोली नहीं चलाता। अंग्रेजी विवरणों में ऊदादेवी को ब्लैक टाइग्रैस कहा गया| यह कितने दुःख व क्षोभ की बात है कि भारतीय इतिहास लेखन में ऊदादेवी के बलिदान को वो महत्व नहीं दिया गया जिसकी वो अधिकारिणी है| ऊदा देवी उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसे समाज में अब तक अबला कहा जाता रहा है| शायद, आज भी हमारा समाज एक अबला नारी के सफल योगदान को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सबल उपस्थिति को स्वीकार करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रहा है| इतिहास इस मान्यता से ही परिचालित होता रहा कि अंग्रेजों के विरुद्ध केवल उच्च वर्ग ने ही तीव्र प्रतिक्रिया की| वह तबका जो तत्कालीन समाज में निम्न जाति कहलाता था, चेतना के अभाव में शोषण को ही अपनी नियति मान बैठा था| अगर, वर्ण व्यवस्था के सामाजिक पहलुओं से उठकर देखा जाये तो संघर्ष की भावना निम्न वर्ग में भी रची बसी थी व जरूरत पड़ने पर उन्होंने अपने इस संघर्ष को उच्च वर्गों से अधिक तीव्र रूप से पूर्ण किया था| यही नहीं संघर्ष को पुरुषों की ही बपौति माना गया जिसमें अभी तक पुरुषों के वर्चस्व को महत्त्व दिया गया, नारी को नहीं| समाज भी नारी को अबला, लाचार और असहाय के रूप में स्वीकार करता है ना की एक वीरांगना के रूप में किन्तु यह सच नहीं है| इतिहास की पड़ताल करने पर कुछ और ही हकीकत प्रस्तुत होती| देश की महिलाओं ने तमाम बाधाओं और उपेक्षाओं के बावजूद यह सिद्ध किया कि नारी पुरुषों से भी अधिक क्षमतावान होती हैं| इसी क्रम में वीरांगना ऊदादेवी ने अप्रतिम वीरता का परिचय देते हुए ऐसे प्रतिमान स्थापित किए, जो इतिहास में विरले ही दिखाई पड़ते हैं|

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 256

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
17 hours ago
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service