आप यूँ ही अगर हमसे रूठे रहे
एक आशिक़ जहाँ से गुज़र जाएगा
ऐसी बातें करोगे अगर आप तो
ग़म का मारा ये दिल कुछ भी कर जाएगा
आप यूँ ही अगर...
कैसी नाराज़गी है ओ जान-ए-वफ़ा
मुझसे क्या हो गई भूल कुछ तो बता
हाय कुछ तो बता
आप ख़ुद ही समझ लेंगे इक रोज़ ये
जब ख़ुमार आपका ये उतर जाएगा
आप यूँ ही अगर...
तेरे वादों पे हम कर यक़ीं लुट गए
तेरी भोली सी सूरत पे क्यूँ मिट गए
हाय क्यूँ मिट गए
मर मिटोगे जो हर भोली सूरत पे यूँ
हुस्न वादों से अपने मुकर जाएगा
आप यूँ ही अगर...
बस तुम्हारे ही बन के रहेंगे सदा
फिर कभी तुमसे हम अब न होंगे जुदा
अब न होंगे जुदा
ये अदा है तुम्हारी या इक़रार है
वक़्त इसका भी इज़हार कर जाएगा
आप यूँ ही अगर हमसे रूठे रहे
एक आशिक़ जहाँ से गुज़र जाएगा
"मौलिक व अप्रकाशित"
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मशहूर नग़्मा... आप यूँ ही अगर हमसे मिलते रहे
देखिये एक दिन प्यार हो जाएगा
की ज़मीन में नग़्मे की एक सईद कोशिश।
Comment
आदरणीय सर्वश्री लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, रवि भसीन शाहिद जी और सालिक गणवीर जी आदाब, आप सभी की ज़र्रा-नवाज़ी का दिल की गहराईयों से शुक्रगुजा़र हूँ। सादर।
आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर'साहिब
आदाब
खूबसूरत नग्मा हम तक पँहुचाने के लिए आपका हार्दिक आभार और आपको तह-ए-दिल से
दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ, आदरणीय.
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, आपको इस ख़ूबसूरत नग़मे की रचना पर हार्दिक बधाई। दरअस्ल मैं आपकी पोस्ट पर आया तो था, लेकिन मैंने ये गीत सुना नहीं हुआ था, सो ये सोचा की गीत सुनकर ही टिप्पणी लिखनी चाहिए। राग केदार में बहुत मधुर धुन बनाई ओ पी नय्यर साहिब ने। सादर
आ. भाई अमीरुद्दीन जी सादर अभिवादन । इस सन्नाटे से होकर मैं गुजरा तो था पर निशान न जाने कहाँ गायब हो गये ...बहरहाल पुनः इस खूबसूरत नग्मे के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें ।..
इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई ?!!!
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