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मक़ाम ऐसे चाहत में आने लगे हैं
अब उनके सितम दिल को भाने लगे हैं [1]
मज़े वस्ल में पहले आते थे जो सब
हमें अब वो फ़ुर्क़त में आने लगे हैं [2]
उन्हीं का तो ग़म हमने ग़ज़लों में ढाला
ये एहसाँ वो हम पर जताने लगे हैं [3]
नया जौर का सोचते हैं तरीक़ा
वो उँगली से ज़ुल्फ़ें घुमाने लगे हैं [4]
मुझे लोग दीवाना समझेंगे शायद
मेरे ख़त वो सबको सुनाने लगे हैं [5]
हुए इतने बेज़ार ज़ुल्मत से आख़िर
सब अपने घरों को जलाने लगे हैं [6]
वो जादू है अपनी क़लम में अदू भी
उन्हें ख़त हमीं से लिखाने लगे हैं [7]
वो बे-मिस्ल शाइर समझते हैं ख़ुद को
क़वाफ़ी फ़क़त जो मिलाने लगे हैं [8]
ये अच्छे बुरे शे'र का फ़र्क़ 'शाहिद'
समझने में हमको ज़माने लगे हैं [9]
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
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कठिन शब्दों के अर्थ:
1. वस्ल = मिलन
2. फ़ुर्क़त = जुदाई
3. जौर = अत्याचार
4. बेज़ार होना = अप्रसन्न होना, तंग आना
5. ज़ुल्मत = अँधेरा
6. अदू = प्रतिद्वंद्वी, दुश्मन
7. बे-मिस्ल = अनुपम, बेजोड़
8. क़वाफ़ी = 'क़ाफ़िया' का बहुवचन
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' भाई, ग़ज़ल तक आने के लिए और मेरा हौसला बढ़ाने के लिए आपका हार्दिक आभार!
आदरणीया Dimple Sharma साहिबा, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी और प्रोत्साहन के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हूँ!
आद0 रवि भसीन 'शाहिद' जी सादर अभिवादन। कौन सा शेर को लिखूँ कौन से शैर को छोडूं, यहां तक हरेक शैर मारकऔर लाज़बाब है। बहुत बहुत बधाई आद0। सादर
आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते, वाह बहुत ख़ूब आदरणीय, लाजवाब ग़ज़ल हुई है खासतौर पर अन्तिम शेर तो कमाल हुआ है बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
आदरणीया Madhu Passi 'महक' साहिबा, ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हूँ!
जनाब TEJ VEER SINGH जी, हौसला-अफ़ज़ाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिय: हुज़ूर!
हार्दिक बधाई आदरणीय रवि भसीन "शाहिद" जी।बेहतरीन गज़ल।
मज़े वस्ल में पहले आते थे जो सब
हमें अब वो फ़ुर्क़त में आने लगे हैं [2]
मुझे लोग दीवाना समझेंगे शायद
मेरे ख़त वो सबको सुनाने लगे हैं [5]
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' भाई, आपकी नवाज़िश और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हूँ!
आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन । एक और अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।
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