2122 / 1122 / 1122 / 22
उस अधूरी सी मुलाक़ात पे रोना आया
जो न कह पाए हर उस बात पे रोना आया [1]
दूरियों के थे जो क़ुर्बत के भी हो सकते थे
ऐसे खोए हुए लम्हात पे रोना आया [2]
दे गए जाते हुए वो जो ख़ज़ाना ग़म का
जाने क्यूँ उस हसीं सौग़ात पे रोना आया [3]
रो लिए उनके जवाबात पे हम जी भर के
फिर हमें अपने सवालात पे रोना आया [4]
आँख भर आई अचानक यूँ ही बैठे बैठे
क्या बताएँ तुम्हें किस बात पे रोना आया [5]
दिल तो कम्बख़्त भरा बैठा था कब से 'शाहिद'
कुछ नहीं और तो बरसात पे रोना आया [6]
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
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साहिर लुधियानवी साहिब की मशहूर ग़ज़ल:
"कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया"
की ज़मीन में एक विनम्र प्रयास...
Comment
आद0 रवि भसीन जी सादर अभिवादन। क्या खूब ग़ज़ल कही आपने। पढ़कर मज़ा आ गया। वाह भाई वाह। बहुत खूब। शैर दर शैर बधाई और मुबारकबाद कुबूल करें।
आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, नवाज़िश, करम, मिह्रबानी के लिये हार्दिक आभार जनाब!
आदरणीय भसीन साहब
आदाब
एक बहुत ही उम्दा ग़ज़ल के लिए दाद और मुबारकबाद स्वीकारें. मक़ता तो बहुत खूबसूरत बन पड़ा है
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' भाई, सादर अभिवादन। आपकी उत्साह-वर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन ।अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी और सुझाव के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। जनाब छटे शेर में ये कहने का प्रयास किया है कि "जब और कोई कारण नहीं मिला तो बरसात देख कर ही आँखें छलक पड़ीं, क्यूँकि दिल कई ग़मों से भरा हुआ था"। बारिश भी कई बार एक अजीब से कैफ़ियत तारी कर के बहुत भावुक कर देती है, हुज़ूर।
आदरणीय Madhu Passi 'महक' साहिबा, आपकी नवाज़िश के लिए हार्दिक आभार।
मुहतरम जनाब रवि भसीन 'शाहिद' साहिब आदाब, शानदार ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।
//कुछ नहीं और तो बरसात पे रोना आया [6] "कुछ नहीं और तो" ज़रा "बरसात पे रोना आया" से मेल नहीं खा रहा है:
अगर जँचे तो मिसरा यूँ कर के देख सकते हैं : "अब्र जो बरसे तो बरसात पे रोना आयाा" सादर ।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी, ग़ज़ल तक आने के लिए और हौसला बढ़ाने के लिए आपका तह-ए-दिल से आभारी हूँ जनाब!
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