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हौंसला बुलंद कर

मुँह लटकाए बैठा है क्यूँ

हौंसला अपना बुलंद कर

गोर्वित वंश का वंशज है तू

निडर होकर आगे बढ़ ||

 

कदम चूमेगी मंजिल एक दिन

अनिश्चितता ना हृदय धर

कट जायेगी दुख की घड़ियाँ

इसकी ना तू चिंता कर ||

 

हर पल हर क्षण वक़्त बदलता

इसके संग तू खुद को बदल

 कर्तव्य धर्म की पुजा कर

कर्मठता संग तू आगे बढ़ ||

 

स्वर्ण इतिहास है तेरे वंश का

उसकों तू ना कलंकित कर

समस्याओ से यदि टूट जाएगा तो

लक्ष्य प्राप्ति भूल के चल ||

 

उत्साहवर्धन करती उनकी गाथा

त्याग बलिदान को याद तो कर

आशीष चाहिए उनका यदि तो  

शीश चुका, नमन तो कर ||

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2020 at 4:04am

आ. भाई फूल सिंह जी, सादर अभिविदन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

मेरे हिसाब से तीसरी पंक्ति में आया शब्द "गोर्वित" नहीं "गर्वित" होना चाहचाहिए । देेखििएगा।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 4, 2020 at 9:50pm

अच्छी रचना है सिंह साहब...

कृपया ध्यान दे...

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