मुँह लटकाए बैठा है क्यूँ
हौंसला अपना बुलंद कर
गोर्वित वंश का वंशज है तू
निडर होकर आगे बढ़ ||
कदम चूमेगी मंजिल एक दिन
अनिश्चितता ना हृदय धर
कट जायेगी दुख की घड़ियाँ
इसकी ना तू चिंता कर ||
हर पल हर क्षण वक़्त बदलता
इसके संग तू खुद को बदल
कर्तव्य धर्म की पुजा कर
कर्मठता संग तू आगे बढ़ ||
स्वर्ण इतिहास है तेरे वंश का
उसकों तू ना कलंकित कर
समस्याओ से यदि टूट जाएगा तो
लक्ष्य प्राप्ति भूल के चल ||
उत्साहवर्धन करती उनकी गाथा
त्याग बलिदान को याद तो कर
आशीष चाहिए उनका यदि तो
शीश चुका, नमन तो कर ||
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. भाई फूल सिंह जी, सादर अभिविदन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
मेरे हिसाब से तीसरी पंक्ति में आया शब्द "गोर्वित" नहीं "गर्वित" होना चाहचाहिए । देेखििएगा।
अच्छी रचना है सिंह साहब...
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