For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपना द्वार खुला अलबत्ता.- ग़ज़ल

मापनी २२ २२ २२ २२ 

है जिनके हाथों में सत्ता. 

उनका हर दिन बढ़ता भत्ता. 

छोड़ दिया जिसको डाली ने, 

इधर-उधर उड़ता वह पत्ता.

कीमत भारी होनी ही थी,

था पुस्तक पर मोटा गत्ता.

दुक्की-तिक्की जैसी जनता,

सत्ता तो आखिर है सत्ता.

कैसे अपनी लाज बचाये,

जिसके पास न कपड़ा लत्ता.  

ऊँचाई पर भी पहरे हैं,

जैसे मधुमक्खी का छत्ता.

बंद जियादातर हैं सबके,

अपना द्वार खुला अलबत्ता.

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 959

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 14, 2020 at 6:39pm

 आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2020 at 6:32am

आ. भाई बसन्त कुमार जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 11, 2020 at 5:20pm

आदरणीय आशीष यादव  जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 11, 2020 at 5:20pm

आदरणीय Samar kabeer जी सादर नमस्कार 

आपकी तरमीम हमेशा ही लाजबाब होती है 

आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 11, 2020 at 5:19pm

आदरणीय Harash Mahajan  जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 11, 2020 at 5:18pm

आदरणीय Sushil Sarna जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 11, 2020 at 5:18pm

आदरणीय Dimple Sharma  जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by आशीष यादव on September 10, 2020 at 10:50pm

आदरणीय श्री बसंत कुमार शर्मा साहब, एक अच्छी गजल बनी है। बधाई स्वीकार कीजिये। 

Comment by Samar kabeer on September 10, 2020 at 3:46pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'जिनके भी हाथों में सत्ता'

उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'है जिनके हाथों में सत्ता'

Comment by Harash Mahajan on September 8, 2020 at 11:46pm

सुंदर ग़ज़ल हुई है आ0 बसंत कुमार जी । बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service