आँख से काजल चुराने का न कौशल हम में था
दूर रह कर याद आने का न कौशल हम में था।१।
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नाम पेड़ों पर तो हम भी लिख ही लेते थे मगर
पुस्तकों में खत छिपाने का न कौशल हम में था।२।
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दोस्ती सूरज सितारों से तो अपनी थी गहन
चाँद को लेकिन रिझाने का न कौशल हम में था।३।
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पा गये विस्तार तो हम सिन्धु जैसे हो गए
प्यास प्यासों की बुझाने का न कौशल हम में था।४।
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शूल सम जीवन में हम तो खुरदरे ही रह गये
फूल सा खुद को बनाने का न कौशल हम में था।५।
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी ' मुसाफिर' जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
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