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कहने को जिसमें यार हैं अच्छाइयाँ बहुत
पर उसके साथ रहती हैं बरबादियाँ बहुत।१।
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सजती हैं जिसके नाम से चौपाल हर तरफ
सुनते हैं उस को भाती हैं तन्हाइयाँ बहुत।२।
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कैसे कहें कि गाँव को दीपक है मिल गया
उससे ही लम्बी रात की परछाइयाँ बहुत।३।
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पाँवों तले समाज को करके बहुत यहाँ
चढ़ता गया है आदमी ऊँचाइयाँ बहुत।४।
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बैठी हैं घर किये वहाँ अब तो रुदालियाँ
बजती थी जिस भी गाँव में शहनाइयाँ बहुत।५।
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार ।
आ. भाई हर्ष महाजन की , सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'रहती हैं साथ उसके पर बरबादियाँ बहुत'
ये मिसरा बह्र में नहीं है, यूँ कर सकते हैं:-
'पर उसके साथ रहती हैं बरबादियाँ बहुत'
आदरनीय भाई लक्ष्मण धामी जी आदाब । बहुत सुंदर सृजन ।
"सजती हैं जिसके नाम से चौपाल हर तरफ
सुनते हैं उस को बेहतरीन ।
भाती हैं तन्हाइयाँ बहुत"
सादर
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