२१२२ २१२२
फूल काँटों में खिला है,
प्यार में सब कुछ मिला है.
है न कुछ परिमाप गम का,
गाँव है, कोई जिला है.
झोंपड़ी का देखकर गम,
तख़्त कब कोई हिला है.
है कहाँ जाना न मालूम,
क्या गजब ये काफिला है.
हो अगर संवाद दिल से,
खत्म हर शिकवा गिला है.
तोडना उसको है मुश्किल,
ख़्वाहिशों का जो किला है.
दर्द सँग किलकारियाँ हैं,
जिंदगी का सिलसिला है.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी सादर नमस्कार
आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया
बेहतरीन ग़ज़ल कही आदरणीय शर्मा जी...दूसरे शे'र में जो विशेषण दिये वो कमाल हैं...
आदरणीय Samar kabeer जी सादर नमस्कार
जी उत्तम जानकारी दी आपने , आपकी इस्लाह से हमेशा ही मेरा मार्गदर्शन होता है. सादर नमन , कुछ और सोचता हूँ
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'गाँव है, कोई जिला है'
इस मिसरे में सहीह शब्द है "ज़ि'लअ" इसका वज़्न ज़रूर 12 है,मगर इसे 'ला' के क़ाफ़िये के साथ नहीं ले सकते,ग़ौर करें ।
'ख़्वाहिशों का जो किला है'
इस मिसरे में सहीह शब्द है "क़ल'अ:" इसे भी 'ला' के क़ाफ़िये के तौर पर नहीं ले सकते,देखियेगा ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार
आपकी हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
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