For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मार ही दें न फिर ये लोग मुझे.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

2122 1212 22/112


जाँ से प्यारे हैं सारे लोग मुझे

मार देंगे मगर ये लोग मुझे(1)

मुझको पानी से प्यार है लेकिन
एक दिन फूँक देंगे लोग मुझे (2)

मैं उन्हें अपना मानता हूँ मगर 
ग़ैर समझे हैं मेरे लोग मुझे (3)

उम्र भर शह्र में रहा फिर भी
जानते ही नहीं ये लोग मुझे (4)

बाद मुद्दत के अपने गाँव गया
सारे पहचानतेे थे लोग मुझे (5)

उनकी बातों का क्यों बुरा मानूँ
लग रहे हैं भले से लोग मुझे (6)

कौन रोके मुझे यहाँ "सालिक"
जब बुलाएँ वहाँ के लोग मुझे (7)

*मौलिक/अप्रकाशित.

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on December 2, 2020 at 6:22pm

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज' जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई के लिये तह-ए -दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ. 

Comment by सालिक गणवीर on December 2, 2020 at 6:22pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई के लिये तह-ए -दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ. 

Comment by सालिक गणवीर on December 2, 2020 at 6:19pm

आदरणीय समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई के लिये तह-ए -दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ. आपकी इस्लाह पर तामील के बाद ग़ज़ल संवर गई है. ममनून हूँ मुहतरम।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 2, 2020 at 12:46pm

बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीय सालिग जी...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 1, 2020 at 1:22pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी , सादर अभिवादन । गजल का प्रयास अच्छा हुआ है ।हार्दिक बधाई । आ. समर जी के सुझाव से गजल और निखर सकती है । सादर..

Comment by Samar kabeer on November 29, 2020 at 8:53pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'मार ही दें न फिर ये लोग मुझे
जाँ से प्यारे हैं सारे लोग मुझे'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, इस मतले को यूँ कहें:-

'जाँ से प्यारे हैं सारे लोग मुझे

मार देंगे मगर ये लोग मुझे'

'मैं उन्हें मान लूँ अगर अपना
ग़ैर समझेंगे मेरे लोग मुझे'

इस शैर को यूँ कहें:-

'मैं उन्हें मानता हूँ अपना मगर

ग़ैर समझे हैं मेरे लोग मुझे'

'बाद अरसे के अपने गाँव गया
फिर भी पहचानते थे लोग मुझे'

इस शैर को यूँ कहें:-

'बाद मुद्दत जब अपने गाँव गया

सारे पहचानते थे लोग मुझे'

'उनकी बातों का क्यों बुरा मानूँ'

इस मिसरे में 'उनकी' की जगह "इनकी" कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service