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जाँ से प्यारे हैं सारे लोग मुझे
मार देंगे मगर ये लोग मुझे(1)
मुझको पानी से प्यार है लेकिन
एक दिन फूँक देंगे लोग मुझे (2)
मैं उन्हें अपना मानता हूँ मगर
ग़ैर समझे हैं मेरे लोग मुझे (3)
उम्र भर शह्र में रहा फिर भी
जानते ही नहीं ये लोग मुझे (4)
बाद मुद्दत के अपने गाँव गया
सारे पहचानतेे थे लोग मुझे (5)
उनकी बातों का क्यों बुरा मानूँ
लग रहे हैं भले से लोग मुझे (6)
कौन रोके मुझे यहाँ "सालिक"
जब बुलाएँ वहाँ के लोग मुझे (7)
*मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई के लिये तह-ए -दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ.
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई के लिये तह-ए -दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ.
आदरणीय समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई के लिये तह-ए -दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ. आपकी इस्लाह पर तामील के बाद ग़ज़ल संवर गई है. ममनून हूँ मुहतरम।
बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीय सालिग जी...
आ. भाई सालिक गणवीर जी , सादर अभिवादन । गजल का प्रयास अच्छा हुआ है ।हार्दिक बधाई । आ. समर जी के सुझाव से गजल और निखर सकती है । सादर..
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'मार ही दें न फिर ये लोग मुझे
जाँ से प्यारे हैं सारे लोग मुझे'
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, इस मतले को यूँ कहें:-
'जाँ से प्यारे हैं सारे लोग मुझे
मार देंगे मगर ये लोग मुझे'
'मैं उन्हें मान लूँ अगर अपना
ग़ैर समझेंगे मेरे लोग मुझे'
इस शैर को यूँ कहें:-
'मैं उन्हें मानता हूँ अपना मगर
ग़ैर समझे हैं मेरे लोग मुझे'
'बाद अरसे के अपने गाँव गया
फिर भी पहचानते थे लोग मुझे'
इस शैर को यूँ कहें:-
'बाद मुद्दत जब अपने गाँव गया
सारे पहचानते थे लोग मुझे'
'उनकी बातों का क्यों बुरा मानूँ'
इस मिसरे में 'उनकी' की जगह "इनकी" कर लें ।
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