2122- 2122- 2122- 212
तू वतन की आबरू है तू वतन की शान है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत तुझपे दिल क़ुर्बान है
तेरी जुर्रत से हुआ नाकाम दुश्मन हिन्द का
नाज़ करता आज तुझपे सारा हिन्दुस्तान है
हैं मुबारक तेरी गलियांँ, गाँव तेरा, घर तिरा
मरहबा माँ बाप हैं वो जिनकी तू संतान है
ईद हो या हो दिवाली सरहदों पर ही रहा
मेरी धड़कन मेरी साँसों पर तेरा अहसान है
मुल्क पर होते फ़िदा जो वो कभी मरते नहीं
हर सिपाही की ये हसरत बस यही अरमान है
याद फिर आया तेरी लेकर शहादत का ये दिन
आँखों से बहता है दरिया दिल मेरा वीरान है
ये अक़ीदत की ख़िराज अब पेश करता है 'अमीर'
जान-ओ-तन क़ुर्बान मेरा तुझपे सब क़ुर्बान है
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आपका मशविरा और मशविरे का अंदाज़ भी ख़ूब है। सादर।
सादर प्रणाम अमीर जी वाह क्या ग़ज़ल कही है मज़ा आ गया
क्या शैर है
"हैं मुबारक तेरी गालियाँ गाँव तेरा घर तिरा
मरहबा माँ बाप हैं वो जिनकी तू संतान है"
सादर
जनाब कृष मिश्रा 'जान' साहिब गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।
देश के वीर सपूतों के नाम लाज़वाब ग़ज़ल हुई है आ.अमीरुद्दीन सर जी शेर दर शेर दाद पेश करता हूं।सादर।
जनाब लक्षमण धामी भाई 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के बेहद मशकूर हूँ। सादर।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया। सादर।
बड़ी ही सुन्दर और भावपूर्ण ग़ज़ल कही आदरणीय..
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