For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नज़्म (कृषि बिल पर किसानों के शकूक-ओ-शुब्हात)

1222 - 1222 - 1222 - 1222 

ज़मीं होगी तुम्हारी पर फ़सल बेचेंगे यारों हम

मिलेगी तुमको राॅयल्टी न देंगे खेत यारों हम

जो बोएगा वही काटेगा ये बातें पुरानी हैं

फ़सल तय्यार करना तुम मगर काटेंगे यारों हम

ये जोड़ी अब तुम्हारी और हमारी ख़ूब चमकेगी

करो मज़दूरी तुम डटकर करें व्यापार यारों हम 

ज़मीं पर बस हमारी ही हुकूमत होगी अब प्यारो 

मईशत 'उनके' हाथों में न जाने देंगे यारों हम 

रखेंगे हम ज़ख़ीरा कर ज़मीं उगलेगी जो सोना

किसी का बस न कुछ होगा कि ख़ुद-मुख़्तार यारों हम 

''मौलिक व अप्रकाशित'' 

Views: 1095

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 4, 2021 at 9:41pm

जनाब डॉक्टर अरुण कुमार शास्त्री जी पुनः आगमन पर आपको धन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया  ''आपने विपरीत ध्रुव के रूप में कटाक्ष शैली में संवाद किया है।'' के लिए विशेष धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। सादर।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 4, 2021 at 8:30pm

जी आ. अमीदुद्दीन अमीर सर मुझे उस वख्त भी ऐसा आभास हुआ था कि टाइटल में गलती से "ग़ज़ल" टाइप हुआ है, आपकी गजलों के अनुरूप,ये नज़्म भी  बेहतरीन लय लिए हुए, अपने संदर्भ को पूर्ण कर रही है। किसान आंदोलन की शंकाओं को आ. आपने बखूबी बयान किया है इस नज़्म के माध्यम से। खासकर जिस तरह से आपने विपरीत ध्रुव के रूप में कटाक्ष शैली में संवाद किया है वह और भी धार पैनी कर रहा  है नज़्म की।

सादर।

Comment by Chetan Prakash on February 2, 2021 at 3:06pm
  • आदाब,  आपने 'अमीर' साहब मेरी  कोई  टिप्पणी ध्यान  से नही पढ़ी। मैं कोई  भी बात राग द्वेष को लेकर  नहीं  करता । अत: एक  बार  फिर  देख कर बताएं मैंने आप को  लेकर  कौन  सी व्यक्तिगत  टिप्पणी की है। बाकी जो आपने कहा है, उसका जवाब  भी आप  को जरूर  मिलेगा ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 2, 2021 at 2:31pm

//आदरणीय 'अमीर' साहब आप उक्त 'नज़्म के रचयिता है, किसी व्यक्ति अथवा समूह के प्रवक्ता नहीं है, सो उक्त 'नज़्म' आप की अभिव्यक्ति है और आप उसके प्रति जवाबदेह है!//

जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, अपने कृत्यों का का हर कोई जवाबदेह होता है,  मैं किसी का भी प्रवक्ता नहीं हूँ और ये नज़्म मेरी स्वयं की अभिव्यक्ति हो ये ज़रूरी नहीं है, एक कवि या शाइर किन्हीं बाधाओं या सीमाओं से नहीं बंधा हो सकता यदि वह मर्यादा का पालन करे।

मेरा आपसे निवेदन है कि आप इस मंच की मूल भावना का सम्मान करते हुए प्रत्येक रचना पर साहित्यिक / तकनीकी गुण-दोष पर टिप्पणी करें न कि व्यक्तिगत राजनीतिक टिप्पणी। यदि आप मेरी इस रचना में कही गयी बातों से असहमत और असहज हैं तो किसी और मंच पर विरोध दर्ज करा सकते हैं।  सादर। 

Comment by Chetan Prakash on February 1, 2021 at 12:24pm

 डाॅ अरुण कुमार  शास्त्री  जी, आप का प्रतिवेदन  मैंने तब भी पढ़ा और  आज  'अमीर' साहब  की हाँ में हाँ मिलाते हुए  आप  भी  कुछ  कहना लगे ! आप  एक उच्च शिक्षित व्यक्ति हैं!  किसी भी समूह  का अपना  संविधान  होता  है, नियमावली होती है!  हाँ,  लेकिन  अन्ततः  कोई  भी समूह  साहित्यिक हो अथवा  राजनीतिक  संविधान  में प्रदत्त  मूलाधिकारों से ऊपर  नहीं है। और जो  अपेक्षा  आप, जनाब, इस नाचीज  से कर रहे है, वो दायित्व  किन्हीं और  महानुभावों के पास  है!  सो, भाई  में दूसरे लोगों के कार्य क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकता ! आशा  है, मेरी बात  आप  तक पहुँच गई होगी! इति  !

Comment by Chetan Prakash on February 1, 2021 at 11:50am

नमस्कार,  'अमीर' साहब,  मैंने अभी आपका  मेरे टिप्पणीकार के जवाब  मे आपका  वक्तव्य  पढा। आप वरिष्ठ  नागरिक  है, एक प्रजातांत्रिक  देश  के , सो आपसे  ऐसे असंयत आचरण  की अपेक्षा  मुझे बिल्कुल  भी नहीं थी । खैर , बेहतर  होता आप  मुद्दों पर बात  करते, बजाय  अनावश्यक  इधर -उधर की बात  करने के ! 

चलिए  आपका काम  मैं किए देता  हूँ ! आदरणीय  'अमीर' साहब  आप उक्त  'नज़्म  के रचयिता  है, किसी  व्यक्ति अथवा  समूह के प्रवक्ता  नहीं है, सो उक्त  'नज़्म' आप  की अभिव्यक्ति है और आप उसके प्रति जवाबदेह  है!

मैंने जो कुछ  अपने  विवेक  से कहा, मैं भी उसके लिए  उत्तरदायित्व स्वीकार  करता हूँ! अब आप  दोनों का तुलनात्मक  अध्ययन करें ! 'उद्दण्डता' कौन कर रहा है,  अपना मत जरूर  अभिव्यक्त करें !

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 31, 2021 at 10:04pm

जनाब डॉक्टर अरुण कुमार शास्त्री जी आदाब, नज़्मपर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया, और इससे भी ज़्यादा नवाज़िश नज़्म को समझने और पसंद करने के लिए। सादर। 

Comment by DR ARUN KUMAR SHASTRI on January 31, 2021 at 9:27pm

behad khoobsoorat line bn bdi hai aamir saahib 

रखेंगे हम ज़ख़ीरा कर ज़मीं उगलेगी जो सोना

किसी का बस न कुछ होगा कि ख़ुद-मुख़्तार यारों हम 

Comment by DR ARUN KUMAR SHASTRI on January 31, 2021 at 9:25pm

janaab ameerudeen  amir sahib aapki nazam bahtreen umdaa lagi mujhe, khoob padan aaiyee 

 

जनाब चेतन प्रकाश जी  ko आदाब karte huye mujhe bhi inko salaam behjnaa hai ye jab likhte hain to ooper neeche daaye baaye kuch nhi dekhte agar inse tehjeeb ki gujarish kro to ye  baukhlaa jaate hain maine 5 mrtbaa inse gujarish ki agar meri koi rachnaa behudaa hai to kripyaa theek jr dijiye tab se ye bahut khafaa hai n jaane kyu .. khuda jaane //   

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 31, 2021 at 8:43pm

जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आपसे सादर निवेदन है कि किसी भी रचना पर टिप्पणी करते हुए संयम और मर्यादा को लांघकर उद्दंडता का परिचय न दिया करें, किस वट-वृक्ष के नीचे तपस्या करने के उपरांत आप को इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई है कि  'नज़्म एक तार्किक वि श्लेषण होना चाहिए'? 

आपने मुख्य संपादक महोदय के चेतावनी देने के बावजूद तार्किक एवं तकनीकी विश्लेषण करने के बजाय रचनाकार की संपूर्ण रचना को 'अधारहीन वक्ततव्य' क़रार देेकर 

न केवल सृजन का उपहास किया है बल्कि अपनी मानसिक हताशा का भी परिचय दिया है, लगता है जैसे आपकी किसी दुखती रग को छेड़ दिया गया हो, यदि आप नज़्म के शीर्षक को ध्यान से पढ़ लेते तो आपको ये पीड़ा न होती  (कृषि बिल पर किसानों के शकूक-ओ-शुब्हात) अर्थात कृषि बिल पर किसानों की शंकाएं' (जिन शंकाओं के वशीभूत किसान आंदोलित हैं) आशा है कि अब आप समझ गए होंगे। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"स्वागतम्"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
17 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
18 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय, बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service