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शेष इस में क्या रहा इनकार कहने के लिए
कह गया कनखी में सब दरवार कहने के लिए।१।
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काम जनता के न आयी आज तक ये एक दिन
यूँ तो जनता की रही सरकार कहने के लिए।२।
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इश्तहारों के सिवा जनहित का उसमें कुछ नहीं
शेष है बस नाम ही अखबार कहने के लिए।३।
*
काम कोई भी किया ऐसा न जिसका दम भरें
बात ही उस की रही दमदार कहने के लिए।४।
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सब दिहाड़ी पर बुलाए उस के ही मजदूर थे
लोग जितने भी जुटे आभार कहने के लिए।५।
(२०-०१-२१)
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। लाज़वाब गज़ल।
काम जनता के न आयी आज तक ये एक दिन
यूँ तो जनता की रही सरकार कहने के लिए।२।
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