हर लहर से बढ़ के अब तो रार साथी तेज कर
पार जाने के लिए पतवार साथी तेज कर।१।
*
ये लहर ऐसे न साथी साथ देगी अब यहाँ
झील के पानी में थोड़ी मार साथी तेज कर।२।
*
जुल्म के पत्थर इसी से कट गिरेंगे देखना
पहले पत्थर पर कलम की धार साथी तेज कर।३।
*
काट दी है जीभ इन की चीखना सम्भव नहीं
सच कहेंगी बेड़ियाँ झन्कार साथी तेज कर।४।
*
ये तो पीड़ित हैं इन्हें कैसे भरोसा आयेगा
साथ लाने के लिए उपकार साथी तेज कर।५।
*
जुल्म के महलों को करना राख हमने ही तो है
अब दिलों में जल रहे अंगार साथी तेज कर।६।
*
खाल ओढ़े शेर की नित घूमते ये भेड़िये
आ सकें पहचान में ललकार साथी तेज कर।७।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई क्रिस मिश्रा जी, गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार।
बहुत ख़ूब गजल हुई आ. लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर भैया हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आ. भाई आज़ी तमाम जी, गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ० मुसाफिर जी हर इक शैर दिल में उतरता है ग़ज़ल लाजवाब है
आ. भाई नाथ सोनांचली जी, अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी सादर अभिवादन।
अच्छी ग़ज़ल कही है, बधाई स्वीकार कीजिये
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार..
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
सादर अभिवादन
भाई वाह। एक और सामाजिक सरोकार से भरपूर उम्दः ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ स्वीकार करें.
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