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आँखों के द्वार बंद होने से पहले

झुक आई है एक और शाम

ग्रभ में गहरी-भूरी स्तब्धता लिए

कुछ फ़ासले, कुछ फ़ैसले

लगते थे जो कभी

थे हमारे लिए नहीं

हर किसी और के लिए

खड़े हैं अब वही फ़ासले

वही फ़ैसले 

घूर रहे हैं सवाल बने बड़े-बड़े

सवालों के उत्तर की प्रत्याशा

ले आती एक और गंभीर शाम

और फिर एक और   ...

मंज़िल तो लगती ही थी हमेशा

पकड़ के बाहर, पहुँच से दूर बहुतं

लेकिन उस आखरी शाम

कुछ तुमने कहा, जो मैंने सुना

"मेरे प्यार, उदास न रहना तुम

घबराना न

मैं न बदलूँगी कभी"

वह एक छोटा-सा पल साथ मेरे

जागती रातों में निद्रा के प्रवाह-सा

बना रहा है बहुत लम्बा सहारा

जानता हूँ मैं कड़वे अकेले में अपने

जानती हो तुम भी वही गहरे में भीतर

आयु में हम बड़े हो रहे हैं

बूढ़े हो रहे हैं

फ़ासलों को तय करने के लिए

हम दोनों के पास

समय कब से अब कम हो रहा है

और चुभते फ़ैसलों के लिए भी

अवसर अब अकसर कम आ रहे हैं

ऐसे में किसी चौराहे पर अब

हमारे अचानक मिल जाने की वह

अकल्पनीय सुखद संभावना

साँझ की पीली आख़री किरण-सी

विलीन हो रही है

पर वह पुल जहाँ गंगा माँ को साक्षी बना

हमने चंद वायदे किए थे

वह पुल हमारे सपनों का बोझ संभाले

अभी भी खड़ा है

और बहते पानी की कलकल आज भी

दुहरा रही है हमारे वह वायदे

अब ढलती आयु में लगता है मुझको

हमारे वह सारे पूरे न हो सके

असमर्थ हुए वायदों की सीमा

यह गंगा का पुण्य तट है

आँखों के द्वार बंद होने से पहले

क्यों न प्रिय हम हमेशा के लिए

उन सभी वि्क्षुब्ध वायदों को आज

आहुति के समान

गंगा के पावन पानी  को अर्पित कर दें

                -------

-- विजय निकोर

( मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2021 at 5:56am

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on April 25, 2021 at 9:20pm

आदरणीय मित्र समर कबीर जी, बृजेश कुमार जी और जान गोरखपुरी जी, 

मैं बहुत ही समय के बाद ओ बी ओ पर आया। आपकी प्रतिक्रियाएँ देखकर मन प्रसन्न हुआ, आभार, हृदयतल से आभार। मुझको अफ़सोस है कि इतनी देर से आभार प्रकट कर रहा हूँ। 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 19, 2021 at 5:35pm

इस बेहतरीन हृदयस्पर्शी रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय विजय निकोर जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2021 at 9:53pm

आदरणीय निकोरे जी बहुत ही खूब भावर्ण रचना के लिए बधाई...सादर

Comment by Samar kabeer on February 13, 2021 at 7:14pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, हमेशा की तरह एक शानदार रचना से नवाज़ा है आपने मंच को, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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