For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डायन प्रथा पर एक पद्यात्मक कहानी

किसे सुनाऊँ अपनी पीड़ा, किसको मैं समझाऊँ
सब पत्थर के देव यहाँ हैं, किस  से सर टकराऊँ

युग  कोई  भी  यहाँ  रहा  हो, सबने  हमें ठगा है
माँ  ममता  की  मूरत  कहकर, देता  रहा दगा है

कल जैसी ही आज हमारी, वैसी भाग्य  निशानी
जुड़ी उसी से सुन लो यारा, अपनी एक  कहानी

शादी के दस साल हुए थे, पर ना  गोद  भरी  थी
बाँझ न रह जाऊँ जीवन भर, इससे बहुत डरी थी

देख किसी बच्चे को सोचूँ, झट  से  गले  लगा लूँ
छाती का मैं दूध पिलाकर, अपनी  प्यास बुझा लूँ

रूह हमारी तड़प  रही थी,  सुनने  को  किलकारी
बिन बच्चे का एक-एक दिन, लगता था जस भारी

लगी भटकने यहाँ -वहाँ मैं, छोड़ा दर ना कोई
मंदिर मस्ज़िद चर्च गयी मैं, हर दर दुखड़ा रोई

पीर गयी दरगाह  गयी मैं, मन्नत  हर  दर माँगी
टोट्को का भी लिया सहारा, रात कई मैं जागी

पर टोट्को को इस दुनिया ने अलग नज़र से देखा
फेर  निगाहें   सबने  मुझसे  खीचीं  लक्ष्मण  रेखा

मेरे प्रति हमदर्दी सबकी, फुर्र हुई  पल  भर  में
मैं डायन हूँ बात यही अब, फैल गयी हर घर में

मैं  हर  एक  दुखद  घटना की जिम्मेदार कहाती
रोष घृणा दुत्कार यही बस, दर -दर अब मैं पाती

डायन - डायन कह कर मुझको, सारे लोग बुलाते
मैं  जादू   टोना   कर   दूँगी,  पास   न  मेरे  आते

साँझ -सवेरे सिर्फ़ मिले अब, जग वालों के ताने
पति  भी  दारू  पीकर  मारे, करके  रोज बहाने

कल तक तो सारे अपने थे, सबके हित जगती थी
चाची भाभी मामी या  तो  ननद  बुआ  लगती थी

छठ्ठी  बरही  का  सोहर  या, गीत  गवनई सारे
गाती और थिरकती थी मैं, सब में बिना विचारे

सबके सुख- दुख में शामिल मैं बड़े प्यार से होती
सब के सुख में हँसती थी औ' सबके दुख में रोती

राम दुलारे का था लड़का, नटखट राज दुलारा
वो मासूम बहुत भोला था, सबको था वो प्यारा

खेल -खेल में यूँ ही इक दिन, वो मेरे घर आया
देख उसे मैं रोक न  पाई,  चूमूँ!  जी  ललचाया

हो अधीर ममतावश मैंने, उसको गोद उठाया
टॉफी दे गालों को चूमा, उस पर प्यार लुटाया

खेल  नियति  का रब ही जाने, कैसी विपदा आई
मूर्छित होकर लाल गिरा वह, मैं अतिशय घबराई

ओझा सोखा डॉक्टर सारे, उसको बचा न पाए
मैं  डायन  हूँ, मैंने  मारा,  सब  ने  दोष  लगाए

पति को भी मिल गया बहाना, निर्णय इक कर डाला
मौका   ऐसा  पाकर  उसने  घर  से  मुझे  निकाला

बड़े बुजुर्गों ने अगले दिन इस हित सभा बुलाई
सबने जम के कोसा मुझको जिसकी बारी आई

बच्चों को वश में करती यह, करके जादू टोना
इस डायन के कारण ही तो, आज पड़ा है रोना

माँ  की  ममता क्या  होती है, क्या हैं उसके माने
यह डायन इक क्रूर निर्दयी, पीर प्रसव क्या जाने

नहीं भरा जी उनका मुझसे, गली - गली घुमवाया
मैं सच्ची हूँ इस हित केवल, हाथ अग्नि उठवाया

डाल दिया फिर गर्म तेल में, झट से हाथ हमारा
मैं बेबस असहाय करूँ क्या, कोई नहीं सहारा

मैं तो ममता बाँट रही थी, बना दिया क्या सबने
इनके हाथों ही होनी है, मौत लिखी अब रब ने

सात  वचन   देने   वाले  ने दगा  दिया  फिर  मुझको
तेल किरोसिन डाला मुझपर, जला दिया फिर मुझको

मैं तो घिरी अग्नि ज्वाला में किसको आज बुलाती
मानव  जो  पशु से बदतर क्या उनसे आस लगाती

कौरव की उस भरी सभा में चीर बढ़ाने वाले
मेरी जान बचाने अब वो, कृष्ण न आने वाले

धू- धू कर के राख बनी मैं, साख गयी मिट सारी
मेरे  बाद और  कितनी  अब, 'नाथ' जलेंगी नारी

अंतिम  नार  नहीं  मैं  कोई,  इतना  तो  तुम  जानो
मुझ सी जलती रोज़ अनगिनत, इतना तो तुम मानो

फिर कलका अख़बार देखना, कोई ख़बर मिलेगी
विषय भले ही इतर मिले पर जलती देह दिखेगी

अग्नि परीक्षा का विरोध यदि, सीता भी कर देती
औरों को भी हिम्मत आती, कड़े कदम कुछ लेती

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 664

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on March 19, 2021 at 3:43pm

आद0बृजेश जी सादर अभिवादन। हृदयतल से आभार आपका

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 16, 2021 at 4:03pm

बहुत ही सारगर्भित और मार्मिक रचना है भाई...बधाई

Comment by नाथ सोनांचली on March 15, 2021 at 5:18am

आद0 कृष मिश्रा जान गोरखपुरी जी सादर अभिवादन। अभिवादन आपका।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 12, 2021 at 12:26pm

आपकी सामाजिक जागरूकता का दिल कायल हो गया है, इस रचना हेतु अशेष बधाई आ. भाई नाथ सोनांचली जी।

Comment by नाथ सोनांचली on March 11, 2021 at 2:57pm

आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम,, आपका आशीर्वाद मिला,, धन्य हुआ।यूँ ही आशीष बनाये रखें।

Comment by Samar kabeer on March 9, 2021 at 6:28pm

जनाब नाथ सोनांचली जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
11 hours ago
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी, अपने शीर्षक को सार्थक करती बहुत बढ़िया लघुकथा है। यह…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service