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ग़ज़ल (हम जिनकी मुहब्बत में दिन रात तड़पते हैं)

221 - 1222 - 221 - 1222

हम जिनकी मुहब्बत में दिन रात तड़पते हैं

होते ही ख़फ़ा हमसे दुश्मन से जा मिलते हैं 

गुलशन में तेरे हर दिन नए ग़ुंचे चटकते हैं

गिर जाते हैं कुछ पत्ते कुछ फूल महकते हैं

माली है तू हम सबका हम भी हैं तेरी बुलबुल 

हमको ये शरफ़ हासिल हम यूँ  ही चहकते हैं

आँखों में मुहब्बत भर देखा जो हमें तुम ने 

छाया है सुरूर ऐसा हम ख़ुद ही बहकते हैं

कुछ ऐसी तपिश तेरे पैकर की हुई दिलबर 

अंगारे भी इस आतिश से कम ही दहकते हैं 

समझेंगे वो क्या हमको जाने न जो ख़ुदको भी 

जो हम हैं समझते  बस वो हम ही  समझते हैं 

समझो न हमें यूँ ही रखते हैं ख़बर सबकी

मन्सूबे  तुम्हारे  भी  हम  ख़ूब  समझते हैं 

लब हैं कि सुबू हैं ये आँखें हैं कि मयख़ाना 

मदहोशी का आलम है हम देख बहकते हैं

''मौलिक व अप्रकाशित'' 

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 16, 2021 at 6:14pm

जनाब बृजेश कुमार 'बृज' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बेहद मशकूर हूँ। सादर। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 16, 2021 at 4:11pm

वाह वाह आदरणीय बहुत बहुत बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 13, 2021 at 11:38am

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बेहद मशकूर हूँ। सादर। 

Comment by Rachna Bhatia on March 13, 2021 at 9:16am

आदरणीय अमीरुद्दीन'अमीर'जी अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 13, 2021 at 12:17am

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।  सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 12, 2021 at 7:41pm

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन ।अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 12, 2021 at 10:09am

जनाब कृष मिश्रा 'जान' गोरखपुरी साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 12, 2021 at 8:52am

खूबसूरत ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आ. अमीरुद्दीन अमीर सर जी।

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