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कभी दुख में भी मुस्कराकर तो देखो -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२

कभी रिश्ते मन से निभाकर तो देखो
जो  रूठे  हुए  हैं  मनाकर  तो  देखो।१।
*
खुशी  दौड़कर  आप  आयेगी साथी
कभी दुख में भी मुस्कराकर तो देखो।२।
*
बदल लेगा रंगत जमाना भी अपनी
कभी झूठी हाँ हाँ मिलाकर तो देखो।३।
*
कभी  रंज  दुश्मन  नहीं  दे  सकेगा
स्वयं से स्वयं  को बचाकर तो देखो।४।
*
सदा  पुष्प  से  खिल  उठेंगे  ये रिश्ते
कि पाषाण मन को गलाकर तो देखो।५।
*
कोई पाँव तुमको न घायल मिलेगा
कभी शूल पथ से उठाकर तो देखो।६।
*
कहाँ घर तमस का ये मालूम होगा
किसी रात सूरज जगाकर तो देखो।७।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by TEJ VEER SINGH on March 25, 2021 at 7:27pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, बेहतरीन गज़ल ।

कोई पाँव तुमको न घायल मिलेगा
कभी शूल पथ से उठाकर तो देखो।६।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 25, 2021 at 1:41pm

आ. भाई समर जी, पुनः मार्गदर्शन के लिए आभार..

Comment by Samar kabeer on March 25, 2021 at 12:06pm

'कभी हाँ में हाँ भी मिलाकर तो देखो'

मिसरा अच्छा है,लेकिन ऊला में भी 'भी' शब्द है इसलिये मिसरा यूँ कहना उचित होगा:-

'कभी हाँ में हाँ तुम मिलाकर तो देखो'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 25, 2021 at 9:47am

आ. भाई समर जी सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व मार्गदर्शन के लिए आभार। इंगित मिसरे में बदलाव किया है देखिएगा

कभी हाँ में हाँ भी मिलाकर तो देखो'

Comment by Samar kabeer on March 25, 2021 at 8:11am

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।


'जो  रूठे  हुए  हैं  मनाकर  तो  देखो'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-

'जो रूठे हैं उनको मनाकर तो देखो'

'कभी झूठी हाँ हाँ मिलाकर तो देखो'

मुहावरा 'हाँ में हाँ मिलाना' है,इस हिसाब से मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 25, 2021 at 7:31am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।
 

//'खुशी भी स्वयं दौड़ आयेगी साथी' 

//'कभी रंज दुश्मन नहीं दे सकेगा

स्वयं से स्वयं को बचाकर तो देखो।४।  इस में स्वयं से स्वयं को बचाने का तात्पर्य यह है कि अधिकांशतया मनुष्य खुद अपना दुश्मन होता है। अपने आचार व्यवहार के कारण। अतः यदि उसने स्वयं से दुश्मनी मिटा ली तो सब ठीक रहेगा।

//सदा पुष्प से खिल रहेंगे ये रिश्ते

कि पाषाण मन को गलाकर तो देखो।५। 
इस शे'र  सानी के शिल्प में मेरे हिसाब से कोई दोष नहीं है। आपके द्वारा सुझाया सुझाव अच्छा है पर उससे मन्तव्य बदल रहा है। सादर...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 23, 2021 at 11:31pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। 

'खुशी दौड़कर आप आयेगी साथी'  इस मिसरे में 'आप' की जगह 'ख़ुद ही' शिल्प की दृष्टि से उचित होगा।

'कभी रंज दुश्मन नहीं दे सकेगा

स्वयं से स्वयं को बचाकर तो देखो।४।  इस शे'र मिसरों में रब्त नहीं है, ऊला यूँ कर सकते हैं -

'गले ग़ैर को भी लगाकर तो देखो'

'सदा पुष्प से खिल उठेंगे ये रिश्ते

कि पाषाण मन को गलाकर तो देखो।५।  इस शे'र के ऊला के शब्द विन्यास तथा सानी के शिल्प पर ग़ौर कीजियेगा।

ऊला में 'सदा' की जगह' अभी' करने से बात बन सकती है। सानी को यूँ कर सकते हैं - 

दिलों से सियाही हटा कर तो देखो।  सादर।

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