2×11
बदहाली का एक समंदर सर पर है।
शहर की हालत वीरानों से बदतर है।
जिद पर तो बेशक मैं भी आ सकता हूँ ,
लेकिन मुझको बात बिगड़ने का डर है।
जो आँखों की भाषा समझ नहीं पाते,
उन लोगों से कुछ ना कहना बेहतर है।
लूट लिया जिसने आपस के रिश्तों को,
तुम लोगों की आँखों मे वो रहबर है?
नीव हिलाकर चीख रहे हैं झूठे लोग,
उनके पास योजना सबसे बढ़कर है।
एक इमारत है बनने की कोशिश में,
उसकी खातिर मुश्किल में मेरा घर है।
मुश्किल है अब पूरा होना साझा गीत
राग रंग की महफ़िल ही अब बेघर है।
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
सादर प्रणाम आ मनोज जी
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है
आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी , ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें । छठे शेर का कथ्य खास पसंद आया
आदरणीय मुसाफिर जी हार्दिक आभार
सादर
आदरणीय समर कबीर साहब हार्दिक आभार
सादर
आ. भाई मनोज जी, गजल का प्रयास अच्छा हुआ है । हार्दिक बधाई। आ. समर जी की बात का संज्ञान लें..
जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'उनके पास योजना सबसे बढ़कर है'
इस मिसरे की बह्र देखें ।
'राग रंग की महफ़िल ही अब बेघर है'
इस मिसरे की भी तक़ती'अ कर के देखें ।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय चेतन प्रकाश जी
आदाब! ग़ज़ल का प्रयास किया है, आपने ! पहले शे'र में किंचित भटकाव है ! और आखिरी शे'र में भी ! किन्तु नजर में बहुत ज्यादा नहीं चुभता ! हाँ दोनों मिसरों में 'अब' का दोहराव नहीीं होना चाहिए !
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