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कोई बिका तो लाया है कोई खरीद कर
दुनिया में आज हो रही शादी खरीद कर।१।
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हम हर गली या चौक पे चर्चा में व्यस्त हैं
लाला चलाता देश है खादी खरीद कर।२।
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पाया अधिक तो हो गया दुश्मन की ओर ही
किसका हुआ वकील है वादी खरीद कर।३।
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रखता बचा के कौन से जीवन के हेतु वो
बच्चों को लोभी देता न टाफी खरीद कर।४।
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खुद खाके भूख माँ ने खिलाया था कौर इक
कमतर उसे जो दें भी तो रोटी खरीद कर।५।
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कर्मों से जो मिले हैं वो कर्मों से धोइये
मिटते नहीं हैं दाग ये धोबी खरीद कर।६।
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बेमोल मिलता कुछ नहीं दुनिया जहान में
पीड़ा भी पायी हमने तो साथी खरीद कर।७।
मौलिक अप्रकाशित
-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । आपकी उपस्थिति से गजल मुकम्मल हुई...आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई आज़ी तमाम जी, अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
सादर प्रणाम आ धामी सर
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है आज के परिपेक्ष्य में
सादर
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