एक आयु के उपरान्त
प्रेम मुदित तुम्हारा लौट आना
गुज़रती साँसों को मानो
संजीवनी की बूटी से
साँस नई दे देना
स्नेह का यह फल मीठा
और अति आनन्ददायक था
सूने सूखे प्यासे ठूँठ को जैसे
एक आयु के बाद
कुछ घूँट पानी मिला
मेरा मन हँसा, फिर
स्नेह की रिमझिम सोंधी गन्ध में
संध्यावेला में उगते तारों के संग
झूमते-गाते कुछ और हँस दिया
इस नए हृदय-स्पन्दन को थपथपाते
बचपन की अधभूली लोरी को दुलारते
प्रसन्न था मैं, प्रसन्न था बहुत
पर अपने अजनबी विचारों के बीच
तुमसे मिले गत-दुख-हर्ष के कारण
उलझाव था
और था द्वंद्व, द्वंद्व भी बहुत
कुछ ऐसा रहा देर तक मेरा मन
इतनी खुशी में भी
आसमान थामता हुआ
अस्वाभाविक सा डरा डरा
अक्षमता में साँसों पर पहरा देते
लड़ते-झगड़ते गिरते फिर उठते
मेरे भाव-वाचक विचारों पर
होनी के ज़ोरदार धक्के से उठी धूलि में
कराहती अनगिनत हलचल में
इस शिशु-मन पर
किसको पता है कब क्या गुज़रे
अत: इससे पहले कि हो एक और
घना तम-प्रसार
एक और सोच, हो एक और अफ़सोस
आज की सच्चाई को मांजते-संवारते
वर्तमान की कोमल छाया तले
हँस ले मेरे मन, तू खिलकर हँस ले आज
कि सच, कल का किसको पता है
--------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
प्रिय भाई लक्ष्मण जी, सराहना के लिए आभारी हूँ।
प्रिय मित्र नरेन्द्र जी, सराहना के लिए आभारी हूँ।
प्रिय भाई समर जी, आपसे सदैव मनोबल मिला है, आभारी हूँ।
मित्र अरुण जी, मेरी रचना के प्रति आपके स्नेहमय शब्द मेरे लिए पारितोषिक हैं। हृदयतल से आभारी हूँ।
सुन्दर अति सुन्दर रोमान्स से भरी , एक एक शब्द सुन्दर रुप से आपने रचा है एसी रचना कभी कभार ही बनती है , मै इसको 7 /10 न . दूंगा
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह एक उम्द: रचना से मंच को नवाज़ा है,आपने, बधाई स्वीकार करें ।
khub sundar rachna sir ........
आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।
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