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करता है जग में धर्म के लोगो न काम वो
लेकिन बताता नाम है सब को ही राम वो।१।
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कहता था हम से देश को आया सँभालने
पर उजली भोर कर रहा देखो तो शाम वो।२।
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महँगा हुआ है थाली में निर्धन का कौर भी
सेठों को मुफ्त बाँटता हर दम ईनाम वो।३।
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केवल उड़ायी नींद हो ऐसा नहीं हुआ
सपने भी लूट ले गया सब के तमाम वो।४।
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समझा न मन के दर्द को लोगो भले कभी
करता है मन की बात बहुत बेलगाम वो।५।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।
बहुत बढ़िया सृजन
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
कहता था हम से देश को आया सँभालने
इस मिसरे में -"था" की जगह "है" पढ़े ।
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