गड़गड़ाकर
खाँसता है
एक बूढ़ा ट्रैक्टर
डगडगाता
जा रहा है
ईंट ओवरलोड कर
सरसराती कार निकली
घरघराती बस
धड़धड़ाती बाइकों ने
गालियाँ दीं दस
कह रही है
साइकिल तक
हो गया बुड्ढा अमर
न्यूनतम का भी तिहाई
पा रहा वेतन
पर चढ़ी चर्बी कहें सब
ख़ूब इसके तन
थरथराकर
कांपता है
रुख हवा का देखकर
ठीक होता सब अगर तो
इस कदर खटता?
छाँव घर की छोड़कर ये
धूप में मरता?
स्वाभिमानी
खा न पाया
आज तक ये माँगकर
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
नमस्कार भाई धर्मेंद्र कुमार सिंह, 'नवगीत' की भी कोई विषय वस्तु अनिवार्य रूप से होती है, और आपका नवगीत विषय को लेकर अस्पष्ट है , चूँकि आप तथाकथित नवगीत के रचयिता हैं तो आप से बेहतर मेरे प्रश्न का उत्तर कौन दे सकता है ? सो, बंधु मैंने आप से उक्त जानकारी की अपेक्षा की है ! आशा है, आप प्रश्न का जवाब देकर संतुष्ट करने की कृपा करेंगे!
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'' साहब
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहब
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय Samar kabeer साहब
आदरणीय Chetan Prakash जी, यदि आप बताया दें कि आपने इस नवगीत का क्या अर्थ निकाला है तो जहां अस्पष्टता है मैं उसका स्पष्टीकरण दे दूंगा
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय Rahul Dangi Panchal जी
आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन । अच्छा गीत हुआ है । हार्दिक बधाई...
जनाब धर्मेन्द्र कुमार जी आदाब, अच्छा नवगीत सृजित हुआ है, बधाई स्वीकार करें। सादर।
जनाब धर्मेन्द्र कुमार जी आदाब, अच्छा नवगीत लिखा आपने, बधाई स्वीकार करें ।
बंधु, शिल्प की दृष्टि से आपका नवगीत ठीक है, किन्तु इसकी विषय -वस्तु मुझे स्पष्ट नहीं हो पायी, सादर !
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