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मन की मस्ती ,
तन की चाहत ,
आता हैं सावन ,
मिलती हैं राहत ,
रिमझिम रिमझिम ,
बरसे हैं बादल ,
तड़पे हैं दिल  ,
बेकरारी का आलम ,
पिया पिया बोले ,
मन का पपिहरा ,
होवे पागल मन ,
तडपाये जियरा ,
जब सावन आये ,
हरियाली लाये ,
मन मस्तिष्क  में ,
ख्याल ये लाये ,
मन की मस्ती ,
तन की चाहत ,
आता हैं सावन ,
मिलती हैं राहत ,

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Comment by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on July 11, 2011 at 7:27pm
Bahut acchha
Comment by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 5:35pm
dhanyabad ashish bhai
Comment by आशीष यादव on July 11, 2011 at 5:34pm
Sundar rachna guru ji. Badhai.
Comment by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 5:29pm
dhanyabad saurabh bhaiya

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2011 at 5:21pm
//मन की मस्ती ,
तन की चाहत ,
आता हैं सावन ,
मिलती हैं राहत ,//
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.. .. इन पंक्तियों को या तो भोजपुरी की समझें या हिन्दी की .. ..निर्भर पढ़नेवाले की मनोदशा पर है.. 
ग़ज़ब.
Comment by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 5:14pm
dhanyabad sir ji admin ji se niwedan hain ke ko ka kar de

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2011 at 5:11pm

बहुत सधी और सीधी ज़ुबान में यह रचना अपना सफ़र पूरा करती है.  इस उभयभाषी रचना को मेरी बधाई. 

उभयभाषी इस लिये कि पंक्ति ’मन के पपिहरा’ से ’के’ को हटा कर ’का’ कर दिया जाय तो पूरी रचना हिन्दी भाषा में हो जायेगी, वर्ना इस रचना की ज़ुबान भोजपुरी लगती है.  इस संयत प्रयास को पुनः बधाई.

बहुत-बहुत बधाई रवि भाई.... ...

Comment by Nirajan Pravat Luitel on July 11, 2011 at 5:10pm
वाह वाह!!
Comment by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 5:10pm
dhanayabad amrendar ji
Comment by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 5:05pm
dhanyabad sir ji

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