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2122 - 2122 


तू  शफ़ीक़-ओ-मह्रबाँ  है
तुझसा माँ  कोई कहाँ  है


तेरे आँचल  का  ये साया 
मुझको जन्नत का गुमाँ है


तेरा  दामन  मेरी  दुनिया 
और क़दम सारा जहाँ है


रंज हो या  हो ख़ुशी बस
तू सदा  ही ख़ुश-बयाँ  है


बिन  तेरे  ये  ज़िन्दगी तो
ख़ाक है या फिर धुआँ है    


तेरे  दामन  के ये  रौज़न    
माँ  ये  मेरी कहकशाँ  है


बारिशों   में  धूप  में  भी
माँ का आँचल साएबाँ है


माँ  के जैसा  कौन होगा
माँ बड़ी ही सख़्त-जाँ  है


ये  जहाँ  क़ुर्बान माँ  पर 
मेरी  जाँ  तो मेरी  माँ  है

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 12, 2021 at 8:46pm

जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया। सादर।

Comment by Aazi Tamaam on August 12, 2021 at 12:18pm

बेहद भावपूर्ण सुंदर ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें आ

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 12, 2021 at 9:19am

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया।  सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 11, 2021 at 11:09am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन । सुन्दर समसामयिक गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

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